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________________ जैन धर्म, दर्शन एवं संस्कृति की प्राचीनता * 49 धर्म का प्रचार किया। जब उन्हें अपने जीवन का अवसान काल निकट जान पड़ा तो 10 हजार श्रमणों के साथ अष्टापद (कैलाश पर्वत) पर चढ़े। अवसर्पिणीकाल के तीसरे आरे के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष रहे, तब छह दिनों तक अनशन (निराहार) तप में अयोगी अवस्था पाकर शेष अघाती कर्मों का क्षय करके माघ कृष्णा त्रयोदशी के दिन भगवान ऋषभदेव पर्यंकासन में सिद्ध बुद्ध मुक्त हुए। जैन धर्म अथवा भगवान ऋषभदेव की विदेशों में मान्यता : जैन मतानुसार तीर्थंकर ऋषभदेव कर्म भूमि के आदि स्रष्टा थे, जिन्होंने करोड़ों वर्ष पूर्व इस धरती पर अहिंसा मूलक समाज की स्थापना की और मानवता का प्रथम संदेश दिया था। अतएव भारतवर्ष में उनकी पूजा होना स्वाभाविक ही है, लेकिन भारत में ही नहीं वरन् विदेशों में भी उनकी पूजा के उल्लेख मिलते हैं। यहाँ यह स्पष्ट करना चाहूँगी, कि ऋषभदेव कालीन भारत की सीमाएँ बहुत विस्तृत थीं। समय के साथ अनेक नये छोटे-छोटे देश बनते गये और ये सीमाएँ संकुचित होती गई। जैसे वर्तमान में पाकिस्तान का टुकड़ा अलग देश बन गया है। इसके अतिरिक्त जैन साहित्य में यह भी विवरण मिलता है, कि केवलज्ञान के पश्चात् भगवान ऋषभदेव ने भारत से सुदूर प्रदेशों में भी विचरण करके धर्म का प्रचार-प्रसार किया था। उन्होंने जिस क्षेत्र में जिस प्रकार के ज्ञान का उपदेश दिया, वहाँ उसी के देवता के रूप में उनकी पूजा होने लगी। भगवान ऋषभदेव कहीं कृषि के देवता माने गये, कहीं वर्षा के देवता, तो कहीं सूर्यदेव मानकर पूजे गए। सूर्य देव उनके केवल ज्ञान का द्योतक है। चीन और जापान भी उनके नाम और काम से परिचित रहे हैं। चीनी त्रिपिटक में उनका उल्लेख मिलता है। जापानी उनको रोकशब' ( ROKSHAB) कहकर पुकारते हैं। मध्य एशिया, मिश्र, यूनान, फोनेशिया एवं फणिक लोगों की भाषा में वे 'रेशेफ' कहलाए. जिसका अर्थ सींगों वाला देवता है. जो वषभ का अपभ्रंश रूप है। अक्कड़ और सुमेरों की संयुक्त प्रवृत्तियों से उत्पन्न बेबीलोनिया की संस्कृति और सभ्यता बहुत प्राचीन कही जाती है। उनके विजयी राजा हम्मुरावी (2123 से 2081 ई.पू.) के शिलालेखों से पता चलता है, कि स्वर्ग और पृथ्वी का देवता बैल (वृषभ) था। सुमेर के लोग कई देवताओं की पूजा करते थे। वृषभदेव की वे कृषि के देवता के रूप में पूजा करते थे, जिसे वे 'आबू' अथवा 'तामुज' कहते थे। इजिप्ट में सूर्य देवता को सृष्टि का रचयिता माना जाता था। कई देवताओं में उस समय पशु देवता अधिक लोकप्रिय थे। पशुओं में भी बैल और अज विशेष रूप से पवित्र समझे जाते थे। सुमेर तथा बाबुल के एक धर्म शास्त्र में ‘अर्हशम्म' का उल्लेख मिलता है। ‘अर्ह' शब्द 'अर्हत्' का ही संक्षिप्त रूप जान पड़ता है। जैनों के पौषध की भांति लोग (सब्बथ) (Sabbath) को पवित्र दिन मानते थे। उस दिन कोई भी सांसारिक काम
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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