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________________ 48 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन सन्निकट होने के कारण वे उसी समय शेष चार अघाती कर्मों का भी समूल नाश करके, गजारुढ़ स्थिति में ही सिद्ध, बुद्ध और मुक्त हो गई। यद्यपि केवलज्ञान सर्वप्रथम भगवान ऋषभदेव को हुआ, लेकिन इस अवसर्पिणी काल में सर्वप्रथम मोक्षगामी माता मरुदेवी थी। अहिंसात्मक युद्ध पद्धति का प्रतिपादन : भगवान ऋषभदेव के पुत्र बाहुबली ने युद्ध में भी अहिंसात्मक पद्धति का प्रतिपादन किया। ऋषभदेव के ज्येष्ठ पुत्र सम्राट भरत ने सम्पूर्ण देशों में अपना एक छत्र अखण्ड साम्राज्य स्थापित करने की इच्छा से अपने 99 भाइयों के यहाँ यह संदेश भिजवाया, कि वे भरत महाराजा की अधीनता स्वीकार कर लें। उनका संदेश पाकर 98 भाइयों ने तो भगवान ऋषभदेव के पास दीक्षा ग्रहण कर ली, लेकिन बाहुबली भरत की राज्य लिप्सा से क्रोधित हो गए और उन्होंने भरत के संदेश को ठुकरा दिया। फलस्वरूप भरत और बाहुबली दोनों ही अपनी विशाल सेनाओं के साथ युद्ध मैदान में आ डटे, लेकिन युद्ध में होने वाले जन संहार को बचाने के लिए बाहुबली ने कहा, क्यों न हम दोनों भाई ही आपस में निर्णायक युद्ध कर लें। इस प्रस्ताव पर दोनों ने एक मत होकर दृष्टियुद्ध, वाक् युद्ध, मुष्ठि युद्ध और दंड युद्ध द्वारा परस्पर बल परीक्षण प्रारम्भ किया। दृष्टियुद्ध, वाग्युद्ध, बाहुयुद्ध में क्रमशः भरत पराजित हए। अन्त में मुष्टि युद्ध हुआ, तो भरत के मुष्टि प्रहार से बाहुबली पर अधिक प्रभाव नहीं हुआ, किंतु जब बाहुबली ने भरत पर मुष्टि प्रहार के लिए हाथ उठाया, तो समस्त दर्शक भरत के लिए क्षमा प्रार्थना करने लगे। तब बाहुबली के मन में ग्लानि उत्पन्न हुई, कि मैं तुच्छ विषयभोगों के लिए अपने बड़े भाई पर हाथ उठा रहा हूँ, उसे मारने को उत्सुक हुआ हूँ, धिक्कार है मुझे। इसी विचार के साथ वे उठी हुई मुष्ठि से अपने केशों का लोच करके श्रमण बन गए। इस घटना से एक तो बिना जनसंहार के युद्ध की विधा का प्रतिपादन किया। दूसरी ओर बड़े भाई के प्रति अतीव विनय भाव की प्रेरणा मिलती है। तीर्थंकर ऋषभदेव का परिवार : भगवान ऋषभदेव को केवलज्ञान प्राप्त होने के पश्चात् उनका धार्मिक परिवार पुनः बढ़ने लगा। उनके परिवार में 84000 श्रमणों का होना अद्भूत धर्मक्रांति का ही परिणाम था। उनकी व्यवस्था के लिए प्रभु ने 84 गण बनाए तथा प्रत्येक गण के मुखिया नियुक्त किए, जिन्हें गणधर कहा जाने लगा। इस प्रकार भगवान ऋषभदेव के 84 गणधर थे। प्रथम गणधर ऋषभसेन थे। प्रभु के परिवार में 3,00,000 श्रमणियाँ थी, निनकी प्रमुख ब्राह्मी थी। उनके शासन में 3,05,000 श्रावक थे और 5,54,000 श्रारिकाएँ थीं। प्रभु का निर्वाण : भगवान ऋष? देव ने केवलज्ञान प्राप्ति के पश्चात् लम्बे समय तक वर्तमान भारत की सीमाओं से भी बहुत सुदूर क्षेत्रों में विचरण करते हुए
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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