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________________ 424 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन नीतिशास्त्र की परिभाषा : व्यावहारिक जीवन की रीढ़ नीति है। जिस प्रकार बिना नींव के मकान की रचना नहीं हो सकती, वैसे ही नीति धर्म का आधार है। अतः प्रत्येक धर्म-प्रवर्तक, धर्मोपदेशक और धर्मसुधारक ने धर्म के साथ नीति का भी उपदेश दिया, जनसाधारण को नैतिक जीवन जीने की प्रेरणा दी। प्राचीनतम जैन ग्रन्थों के परिशीलन से यह ज्ञात होता है, कि भगवान ऋषभदेव के समय में राजनीति व समाजनीति के व्यापक रूप में ही नीति शब्द प्रयुक्त हुआ है। बाद में नीति शब्द को मर्यादा, व्यवस्था और सामाजिक नियमों के अर्थ में समझा जाने लगा - "नीति मादायाम्। ___ शब्द कोष के अनुसार - “निर्देशन, प्रबन्ध, आचरण, चाल-चलन, कार्यक्रम, शालीनता, व्यवहार-कुशलता, योजना, उपाय, आचारशास्त्र आदि सभी नीति शब्द से जाने जा सकते हैं।" शुक्रनीति में कहा गया है - "नीतिशास्त्र सभी का उपजीक है, लोकस्थिति का व्यवस्थापक है। इसलिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रदायक है।'' इसी में आगे कहा गया है - "नीति के बिना लोक व्यवहार असम्भव है।'' ___ पाश्चात्य दार्शनिक मैकेन्जी के अनुसार - “नीतिशास्त्र सत् और शुभ का अध्ययन है। ___ सेथ नीतिशास्त्र को शुभ के विज्ञान के रूप में 'आदर्श' और 'चाहिये' का सर्वोत्कृष्ट विज्ञान मानता है।" काण्ट ने 'कर्तव्य के लिए कर्तव्य का सिद्धान्त' प्रस्तुत किया। उनके अनुसार शुभत्व ही एकमात्र शुभ है। भारतीय एवं पाश्चात्य सभी नीति चिन्तकों ने सत् और शुभ को नीतिशास्त्र का आधार व लक्ष्य माना है। लौकिक रीति-रिवाजों का पालन, कर्तव्य-अकर्तव्य आदि जितनी भी बातें हैं, वे सब सत् और शुभ का सहचरी मात्र है - ‘चाहिये' भी उस सत्-शुभ की प्राप्ति में सहायक बनते हैं। दूसरे शब्दों में समाज को स्वस्थ एवं संतुलित पथ पर अग्रसर करने एवं व्यक्ति को प्रेय तथा श्रेय की उचित रीति से प्राप्ति कराने के लिए जिन विधि अथवा निषेधमूलक वैयक्तिक और सामाजिक नियमों का विधान देश, काल और पात्र के सन्दर्भ में किया जाता है, वह नीति है और उन नियमों का संकलन नीतिशास्त्र कहलाता है। दशवैकालिक सूत्र में कहा है - "सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं।120 अर्थात् इस न्याय मार्ग को सुनकर, पढ़कर, जानकर ही मानव कल्याण अथवा
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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