SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 427
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नीति मीमांसा * 425 शुभ को जानता, पहचानता है। संक्षेप में यह जीवन का नियामक विज्ञान है और यह विचार समग्र रूप से सभी नीति विचारकों को इष्ट है। जैन नीति-मिमांसा : ___“सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः।1 अर्थात् आस्तिक दर्शनों का परम और चरम लक्ष्य मोक्ष प्राप्ति है। जैन दर्शन ने मोक्ष प्राप्ति के लिए उपर्युक्त त्रिरत्न रूप मार्ग प्रशस्त किया है। सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान होने पर भी जब तक सम्यग्चारित्र की पराकाष्ठा नहीं होती, तब तक मोक्ष नहीं होता। सम्यग्ज्ञान का संबंध ज्ञान से है, सम्यग्दर्शन का संबंध श्रद्धा से सही (सम्यक्) को जानने और उस पर श्रद्धा करने के पश्चात् उस पर आचरण करने से ही मोक्ष प्राप्ति हो सकती है। आचार को ही जैन दर्शन में चारित्र कहा है। चारित्र का अर्थ है, संयम, वासनाओं तथा भोग विलासों का त्याग, इन्द्रियों का निग्रह, अशुभ प्रवृत्ति की निवृत्ति और शुभ प्रवृत्ति की स्वीकृति। यह चारित्र रूप उपासना का मार्ग अत्यन्त कठिन है। जैसाकि आचारांग सूत्र में कहा है - "पणया वीरा महावीहिं। अर्थात् यही मार्ग (न्याय नीति का मार्ग) ध्रुव है। किन्तु इस पर चलना कठिन है। वीर, संकल्प के धनी, पाप से दूर रहने वाले पवित्र मानव ही एक सिद्धि पथ पर चल सकते हैं। चारित्र पालन की उपासकों की क्षमताएँ समान नहीं होती। अतः चारित्र धर्म दो प्रकार का कहा गया है- 1. आगार चारित्र तथा 2. अनगार चारित्र। जैसा कि ठाणांग सूत्र में कहा है - "चरित्त धम्मे दुविहे पण्णत्ते तं जहा-आगार चरित्त धम्मे चेव अणगार चरित्त धम्मेचेव।123 आगार धर्म में गृहस्थ के पालन करने योग्य नियमों का निर्देश किया गया है। जबकि अनगार धर्म सर्वविरति रूप सब प्रकार के सावद्ययोगों से सर्वथा विरत होना 1. अनगार चारित्र धर्म ( श्रमण धर्म ) : अनगार धर्म को स्वीकार करने वाला साधक प्रतिज्ञा करता है - "करेमि भंते! सामाइयं सावजं जोगं पच्चक्खामि जावज्जीवाए तिविहं तिविहेणं, मणेणं, वायाए, काएणं, न करेमि न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि, तस्स भंते! पडिक्क मामि निंदामि गरिहामि अप्पाणं वोसिरामि। 4 अर्थात् भगवान मैं सर्व सावध योग प्रत्याख्यान रूप सामायिक को अंगीकार करता हूँ, जीवन पर्यन्त के लिए तीन करण, तीन योग से नियमों का पालन करूंगा।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy