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________________ नीति मीमांसा * 423 न्होंने ही निश्चित किए। ___ हाकार, माकार तथा धिक्कार नीति के अतिरिक्त ऋषभदेव जी ने चार ण्डनीतियाँ और निर्धारित की - 1. परिभाष : कुछ समय के लिए अपराधी को आक्रोशपूर्ण शब्दों में ___ नजरबन्द रहने का दण्ड देना। 2. मण्डल बंध : सीमित क्षेत्र में रहने का दण्ड देना। 3. चारक : बन्दीगृह में बन्द करने का दण्ड देना। 4. छविच्छेद : अंगोपांगों के छेदन का दण्ड देना। समाज में वर्ण-व्यवस्था का सूत्रपात भी ऋषभदेव जी ने ही किया। उन्होंने ही साम-दाम-दण्ड-भेद राजनीति की ये चार नीतियाँ और इनके सिद्धांत निर्धारित किए। जब वे साधना मार्ग पर जाने लगे, तो उन्होंने उत्तराधिकार की नीति बनाकर अपना संपूर्ण साम्राज्य अपने 100 पुत्रों में बाँट दिया, जिससे राज्य के लिए भाइयों में संघर्ष न हो। केवलज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने धर्म-धर्मनीति-अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि का मर्म बताया। साधु (श्रमण) और श्रावक (गृहस्थ) के धर्म और नीति को समझाया। इस प्रकार कर्म नीति के पश्चात् धर्मनीति का विकास हुआ। इसलिए आवश्यक चूर्णि में कहा गया है - “णीतीओ उसभसामिम्मि चेव उप्पन्नाओ।"12 अर्थात् ऋषभस्वामी सभी प्रकार की नीतियों के आदि पुरस्कर्ता थे। यह मत सिर्फ जैन विद्वानों का ही नहीं अपितु वैदिक दर्शन का भी है। श्रीमद्भागवत् में भी इन्हें नीति और धर्म के संस्थापक के रूप में स्वीकार किया गया है।" भगवान ऋषभदेव का काल अत्यधिक प्राचीन है। वर्षों में इसकी गणना नहीं की जा सकती, लेकिन उनके द्वारा निर्धारित नीति के नियम समय प्रवाह से युगों तक चलते रहे। ___ भगवान ऋषभदेव प्रथम तीर्थंकर थे। कालान्तर में 23 तीर्थंकर और हुए। उन सभी ने अपने-अपने समयानुसार धर्म-नीति नियमों का प्रवर्तन किया। वर्तमान काल में 5वीं शती ईसापूर्व में हुए चौबीसवें तीर्थंकर भगवान महावीर द्वारा प्रवर्तित धर्मनीति नियम ही प्रचलित हैं। वे अपने युग के अप्रतिम व्यक्तित्व थे। उन्होंने पशुवध, हिंसक यज्ञ आदि तथा उस युग में प्रचलित मिथ्या विश्वासों, वर्ण व्यवस्था की जटिलता, दास जैसी घृणित प्रथा की नींव हिलाकर मानव की श्रेष्ठता स्थापित की, स्त्री जाति का गौरव पुनः स्थापित किया और नीति के सार्वभौम सिद्धान्त निर्धारित किये।
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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