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________________ तत्त्व मीमांसा * 351 भाग में जाकर स्थित हो जाता है। जीव का सहज स्वभाव उर्ध्वगमन करने का है। कर्मों के भार से भारी होकर ही वह अधोगमन या तिर्यक गमन करता है। जब कर्मों का संबंध नहीं रहता है, तब वह अपनी स्वाभाविक उर्ध्वगति करता है। समस्त शरीर के बन्धनों को तोडकर लोकाग्र में जा पहुँचता है और वहीं अनन्तकाल तक शुद्ध चैतन्य स्वरुप में परिणमन करता है। यद्यपि जीव का स्वभाव ऊपर की ओर गति करने का है, किन्तु गति में सहायक धर्मस्तिकाय चूंकि लोक के अन्तिम भाग तक ही है, अतः जीव की गति लोकाग्र तक ही होती है, आगे नहीं। ___ सिद्धों के आठ गुण : सिद्ध भगवान में मुख्य रुप से आठ गुण बताए गए हैं 1. समग्र ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होने से अनन्त केवलज्ञान गुण प्रकट होता 2. समग्र दर्शनावरणीय कर्म के क्षय से अनन्त केवल दर्शन गुण प्रकट होता है। 3. वेदनीय कर्म के समूल क्षय होने से निराबाध गुण प्रकट होता है। 4. दो प्रकार के मोहनीय कर्म के नष्ट होने से क्षायिक-सम्यक्त्व-स्वरूपरमण रूप क्षायिक चारित्र प्रकट होता है। 5. चारों प्रकार के आयुष्य कर्म का क्षय होने से अजर-अमर गुण प्रकट होता है। 6. शुभ-अशुभ नाम कर्म के क्षय से अमूर्तत्व गुण प्रकट होता है। 7. दो प्रकार के गौत्र कर्म के क्षीण होने से अपलक्षण रहितत्व गुण प्रकट होता है। 8. पाँच प्रकार के अन्तराय कर्म के क्षय से अनन्त शक्तिमत्व गुण प्रकट होता है। सिद्ध समस्त प्रकार की पौद्गलिक पर्यायों से अतीत हैं। अतः उनमें न वर्ण है, न गन्ध है, न रस है, न स्पर्श है। न उनका कोई संस्थान या आकार है। न वहाँ शरीर है, न किसी प्रकार का संग है, न वेद है, न लेश्या है। वहाँ शब्दों की गति भी नहीं है। सिद्ध परमात्मा का वर्णन करने में कोई शब्द समर्थ नहीं है, कोई तर्क वहाँ तक नहीं पहुँचता, बुद्धि उसको ग्रहण नहीं कर सकती। केवल संपूर्ण ज्ञानमय आत्मा ही सिद्धावस्था में है। सिद्ध जीव अव्याबाध, शाश्वत, निरुपम सुख की अनुभूति करते हुए अनन्तकाल तक स्वरूप परिणमन में निरत रहते हैं। जैसे ज्योति में ज्योति मिलती है, इसी तरह एक में अनेक और अनेक में एक सिद्ध विराजमान रहते हैं। सिद्ध अवस्था में आत्मा, आत्मा को, आत्मा द्वारा आत्मा के लिए आत्मा में से आत्मा में जानता है। यहाँ द्रव्य और गुण एक रूप हो जाते हैं। सिद्ध किसी कारण से उत्पन्न नहीं होते, अतः
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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