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________________ 320 * जैन संस्कृति का इतिहास एवं दर्शन ज्ञाननय, अर्थनय और शब्दनय में से ज्ञाननय का समावेश, संकल्पमात्र ग्राही नैगमनय में होता है। अर्थाश्रित अभेद व्यवहार का संग्रहनय में, भेदाभेद व्यवहार का व्यवहार नय में, एकान्त भेदवादी बौद्ध का ऋजूसूत्र नय में समावेश हो जाता है। काल, कारक, संख्या, उपसर्ग आदि के भेद से अर्थभेद मानने वाली दृष्टि का समावेश शब्दनय में होता है। पर्यायवाची शब्दों में अर्थभेद मानने वाली दृष्टि का समभिरुढ नय में अन्तर्भाव होता है। जिस समय अर्थ क्रिया परिणत हो तभी वह अर्थ है-इस दृष्टि का समावेश एवंभूत नय में होता है। नयों का अभिप्राय एकान्तता की निवृत्ति के साथ संदेश का ग्रहण करना है। नैगम नय ज्ञाननय है, संग्रह-व्यवहार-ऋजुसूत्र-अर्थनय है और शब्द, समभिरुढ़ एवंभूत नय शब्दनय है। इस प्रकार ज्ञानाश्रयी, अर्थाश्रयी और शब्दाश्रयी समस्त व्यवहारों का समन्वय इन सात नयों में किया गया है। सात मूल नय : नयों के मूलतः सर्वसम्मत 7 भेद बताए गए हैं - नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरुढ और एवंभूत। __ 1. नैगमनय : संकल्प मात्र को ग्रहण करने वाला नैगमनय है। जैसे कोई पुरुष दरवाजा बनाने के लिए लकड़ी काटने जंगल जा रहा है, उसे कोई पूछता है, कि कहाँ जा रहे हो? वह उत्तर देता है, कि दरवाजा लेने जा रहा हूँ। यहाँ दरवाजा बनाने के संकल्प में ही 'दरवाजा' का व्यवहार किया गया है। संकल्प सत् में भी होता है और असत् में भी। इस नैगमनय की परिधि में अनेकों औपचारिक व्यवहार भी आते हैं। जैसे आज महावीर जयन्ती है, चूल्हा जल रहा है, यह रास्ता कहाँ जा रहा है? ये सब औपचारिक व्यवहार है, क्योंकि महावीर तो लगभग ढाई हजार वर्ष पहले जन्मे थे, चूल्हा नहीं जलता है, लकड़ी जलती है, रास्ता नहीं जाता है, पथिक जाते हैं। परन्तु नैगम नय की दृष्टि में ये सारे औपचारिक कथन सत्य है। निगम शब्द का अर्थ है, जनपद अथवा ग्रामादि। जिस जनपद की जनता में जो शब्द जिस अर्थ के लिए नियत है, वहाँ पर उस शब्द और अर्थ के सम्बन्ध को जानना नैगमनय है। शब्दों के जितने और जैसे अर्थ लोक में माने जाते हैं, उनको मानने की दृष्टि नैगमनय है। नैगमनय धर्म और धर्मी दोनों को ग्रहण करता है। संक्षेप में दो पर्यायों की, दो द्रव्यों की तथा द्रव्य और पर्याय की प्रधान एवं गौण भाव से विवक्षा करने वाले नय को नैगमनय कहते हैं। नैगम के दो भेद हैं - सर्वग्राही और देशग्राही। सामान्य अंश का आधार लेकर प्रयुक्त होने वाले नय को सर्वग्राही नैगमनय कहते हैं। जैसे-यह घट है। विशेष अंश का आश्रय लेकर प्रयुक्त होने वाले नय को देशग्राही नैगम नय कहते हैं। जैसे यह घट चाँदी या सोने का है। एक अन्य अपेक्षा से नैगमनय के तीन भेद किए गए हैं - भूत नैगमनय, भावी नैगमनय और वर्तमान नैगमनय। अतीतकाल का वर्तमानकाल में संकल्प भूत नैगमनय है। जैसे-यह कहना कि 'आज महावीर जयन्ती है।' यहाँ आज का अर्थ है, वर्तमान
SR No.022845
Book TitleJain Sanskruti Ka Itihas Evam Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMinakshi Daga
PublisherRajasthani Granthagar
Publication Year2014
Total Pages516
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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