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________________ (५४ ) हिंदी-परोक्षज्ञानको विशद मानना परोक्षाभास है जिस प्रकार परोक्षरूपसे अभिमत मीमांसकोंका इंद्रियजन्यज्ञान विशद होनेसे परोक्षाभास कहा जाता है ॥७॥ ___बंगला-परोक्ष ज्ञान विशद हइले ताहा परोक्षामास । येमन मीमांसकेर परोक्षरूपे अभिमत इंद्रियजन्यज्ञान विशद हओयाय ताहा परोक्षाभास ॥ ७ ॥ अतस्मिंस्तदिति ज्ञानं स्मरणाभासं जिनदत्चे सदेवदत्तो यथा॥८॥ हिंदी-जिस पदार्थको पहिले सुन वा देख रक्खा है कालांतर में उसका स्मरण न होकर उसकी जगह दूसरेका स्मरण होना स्मरणाभास है जिस प्रकार पूर्व अनुभूत जिनदत्त की जगह देवदत्त का स्मरण स्मरणाभास कहा जाता है ॥८॥ बंगलाये पदार्थके प्रथम देखिया सुनिया राखा हइया छे कालांतरे उहार स्मरण ना हइया उहार स्थाने अन्य आर किछुर स्मरण हइले ताहा स्मरणाभास । येमन पूर्वे जिनदत्तके देखियाछि एखन तत्स्थाने यदि देवदत्तेर स्मरण हय तवे उहा स्मरणाभास हइवे ॥ ८॥ सदृशे तदेवेदं तस्मिन्नेव तेन सदृशं यमलकवदित्यादि प्रत्याभिज्ञानाभासं ॥९॥ हिंदी-सदृशमें यह वही है ऐसा ज्ञान और यह वही है इस जगह यह उसके समान है, ऐसा ज्ञान प्रत्यभिज्ञानाभास कहा जाता है जैसे-एक साथ उत्पन्न हुए मनुष्यों में तदेवेदं
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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