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________________ ( ५५ ) की जगह तत्सदृश और तत्सदृशकी जगह तदेवेदं यह ज्ञान प्रत्यभिज्ञानाभास कहा जाता है ॥ ९ ॥ बंगला - सदृश स्थले 'इहा अमुकइ' एइरूप ऐक्यबोध वाताही इहाइ इ ज्ञान स्थले 'इहा तत्सदृश' एइ ज्ञान इले ताहा प्रत्यभिज्ञानभास । येमन यमज मनुष्य द्वयेर मध्ये " तदेवेदं” एर स्थले तत्सदृशज्ञान वा " तत्सदृशं " ज्ञानस्थले 'तदेवेदं' ज्ञान एइ उभयइ प्रत्यभिज्ञानाभास ॥ ९ ॥ " असंबद्धे तज्ज्ञानं तर्काभासं ॥ १० ॥ हिंदी -- जिन पदार्थों का आपसमें अविनाभाव संबंध नहिं उनका संबंध मानना तर्काभास है ॥ १० ॥ बंगला - ये पदार्थेर सरूपतः कोनरूप संबंध नाइ, उहादेर संबंध स्वीकार कराके तर्काभास बले ॥ १० ॥ इदमनुमानाभासं ॥ ११॥ तत्रानिष्टादि पक्षाभासः ||१२|| अनिष्टो मीमांसकस्यानित्यः शब्दः || १३ || सिद्ध: श्रावणः शब्दः॥१५॥ बाधितः प्रत्यक्षानुमानागमलोक स्ववचनैः ॥ १५ ॥ हिंदी – अब अनुमानाभास कहते हैं। वहांपर इष्ट असिद्ध और अबाधितसे विपरीत अनिष्ट सिद्ध और बाधित पक्षाभास हैं । शब्दकी अनित्यता मीमांसकको अनिष्ट है क्योंकि मीमांसक शब्दको नित्य मानता है । शब्द कानसे सुना जाता है यह सिद्ध है । तथा प्रत्यक्षबाधित अनुमानबाधित आगमबाधित
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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