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________________ ( ५३ ) प्रमाणइ हइते पारेना । एइ सूत्र द्वारा नैयायिककृत सन्निकर्षेर प्रामाण्य खंडित हईल ॥५॥ ___ अवैशये प्रत्यक्षं तदाभासं बौद्धस्याकस्माद्धृमदर्शनाद्वह्निविज्ञानवत् ॥ ६॥ हिंदी-प्रत्यक्ष ज्ञानको अविशद स्वीकार करना प्रत्यक्षाभास कहा जाता है जिस प्रकार बौद्ध द्वारा प्रत्यक्षरूपसे अभिमत-आकस्मिक धूमदर्शनसे उत्पन्न अग्निका ज्ञान अविशद होनेसे प्रत्यक्षाभास कहलाता है ॥ ६॥ बंगला-प्रत्यक्षज्ञानेर अविशदता स्वीकार करिले ताहा प्रत्यक्षाभास-पदवाच्य हय । येमन बौद्धगणेर प्रत्यक्ष रूपे आभिमत आकस्मिक धूमदर्शन-द्वारा उत्पन्न अग्निर ज्ञान अविशद सुतरां ताहा प्रत्यक्षाभास ॥ ६ ॥ वैशोऽपि परोक्षं तदाभासं मीमांसकस्य करणस्य ज्ञानवत् ॥७॥ २-नैयायिकमते रूपादिर शान संयुक्त समवाय संबंध हय । चक्षु संयुक्त घट, ताहात रूप समवेत आछे सुतरां संयुक्त समवाय संबंध रूपेर ज्ञान हइते पारे । एइ सूत्र द्वारा ताहा खंडन करा याइतेछ । चक्षु संयुक्त फले रस समवाय संबंध थाकिलओ चक्षु द्वारा ताहार शान हयना सुतरां संयुक्त समवायादि संबंध ज्ञान होया प्रतीति विरुद्ध । आर उहा प्रतीति विरुद्ध हइले एइ-कथा स्वीकारेर मूलीभूत सन्निकर्षेर प्रामाण्य वादओ खंडित हाल ।
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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