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________________ नास्त्यत्र शीतस्पर्श औष्ण्यात् ॥७२॥ हिंदी-इसस्थानपर शीतस्पर्श नहीं है क्योंकि उष्णता मौजूद है यहांपर शीतस्पर्शरूप साध्यसे विरुद्ध अग्निका व्याप्य उष्णतारूप हेतु है ॥७२॥ बंगला-एइ स्थाने शीतस्पर्श नाइ । ये हेतु एखाने उप्णता विद्यमान । एस्थले शीतस्पर्शरूपसाध्यहइते विरुद्ध अग्निर व्याप्य उष्णतारुपहेतु हेइया छे ॥७२॥ विरुद्धकार्योंपलब्धिका उदाहरणविरुद्धकार्योपलब्धिरउदाहरण नास्त्यत्र शीतस्पर्टी धूमात् ॥७३॥ हिंदी—यहां शीतस्पर्श नहीं है क्योंकि शीतस्पर्शरूपसाध्य से विरुद्ध अग्निकाकार्य यहां धूआं मौजूद हैं ॥७३॥ बंगला-ऐ स्थाने शीतस्पर्श नाइ । ये हेतु शीतस्पर्श साध्यहइते विरुद्ध अग्निर कार्य धूम विद्यमान ॥७३॥ विरुद्धकारणोपलब्धिका उदाहरण-- विरुद्धकारणोपलब्धिर उदाहरण नास्मिन् शरीरिणि सुखमस्ति हृदयशल्यात् ॥७॥ हिंदी इस प्राणीमें सुख नहीं क्योंकि सुखसे विरुद्ध दुःखका कारण इसके मानसिक व्यथा मालूम पड़ती है ॥७॥ वंगला-एइ व्यक्तिर मध्ये सुख नाइ । ये हेतु सुखहइते विरुद्ध दुःखेर कारण मानसिक पीड़ा इहार देखा याइतेछे १७४॥
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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