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________________ ( ३२ ) अविरुद्ध सहचरोपलब्धिका उदाहरण-अवरुद्धसहचरोपलब्धिर उदाहरणअस्त्यत्र मातुलिंगे रूपं रसात् ॥ ७० ॥ . हिंदी - इस मातुलिंग, 'विजोरा' में रूप है क्योंकि इसमें रस पायाजाता है यहांपर रससे रूपका अनुमान किया गया है क्योंकि बिना रूपके रस रह नहिं सकता ॥ ७० ॥ बंगला - एइ मातुलिंगे रूप ( वर्ण ) आछे । ये हेतु इहाते रस विद्यमान । एस्थले रस हइते रूपेर अनुमान करा गेल । ये हेतु रूप छाडा रस थाकिते परिना ॥ ७० ॥ विरुद्धोपलब्धि के भेद - विरुद्धोपलब्धिर भेद विरूद्धतदुपलब्धिः प्रतिषेधे तथा ॥ ७१ ॥ -- हिंदी – प्रतिषेधरूप साध्यके सिद्ध करनेवाली विरुद्धोपलब्धि भी है भेद हैं अर्थात् विरुद्धव्याप्योपलब्धि, विरुद्ध कार्योपलब्धि, विरुद्धकारणोपलब्धि, विरुद्धपूर्वचरोपलब्धि, विरुद्ध उत्तरचरोपलब्धि, विरुद्धसहचरोपलब्धि ॥७१॥ बंगला — प्रतिषेधरूप सिद्धकारक विरुद्धोपलब्धि ओ छ्य प्रकार । येमन विरुद्धव्यप्योपलब्धि, विरुद्धकार्योपलब्धि, विरुद्धकारणोलपब्धि, विरुद्धपूर्वच रोपलब्धि, विरुद्धउत्त रचरोपलब्धि एवं विरुद्धसहचरोपलब्धि ॥ ७१ ॥ विरुद्धव्याप्योपलब्धिका उदाहरण- विरुद्धव्यप्योपलब्धिर उदाहरण
SR No.022437
Book TitlePariksha Mukham
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManikyanandisuri, Gajadharlal Jain, Surendrakumar
PublisherBharatiya Jain Siddhant Prakashini Samstha
Publication Year1916
Total Pages90
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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