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अष्टपाहुडमें सूत्रपाहुडकी भाषावचनिका ।
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पुंडरीकनाम प्रकीर्णक है ताविषै च्यार प्रकारके देवनिविषै उपजनेके कारणनिका वर्णन है । बहुरि तेरमां महापुंडरीकनाम प्रकीर्णक है ताविषै इन्द्रादिकवडी ऋद्धिके धारक देवनिके उपजने के कारणनिका प्ररूपण है ! बहुरि चौदमां निषिद्धिकानामा प्रकीर्णक है ताविषै अनेक प्रकार दोष की शुद्धतानिमित्त प्रायश्चित्तानिका प्ररूपण है, यह प्रायश्चित्त शास्त्र है, याका निसितिका ऐसा भी नाम है । ऐसें अंगवाह्य श्रुत चौदह प्रकार है ।
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बहुरि पूर्वनिकी उत्पत्ति पर्यायसमास ज्ञानतैं लगाय पूर्वज्ञानपर्यन्त वीस भेद हैं तिनिका विशेष वर्णन है सो श्रुतज्ञानका वर्णन गोमट्टसार नाम ग्रंथ मैं विस्तार करि है तहांतैं जाननां ॥ २ ॥
आगे कहैं हैं जो सूत्रविषै प्रवीण है सो संसारका नाश करै है; - गाथा - सुत्तम्मि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुणदि । सूई जहा असुत्ता णासदि सुत्ते सहा णो वि ॥ ३॥ संस्कृत - सूत्रे ज्ञायमानः भवस्य भवनाशनं च सः करोति । सूची यथा असूत्रा नश्यति सूत्रेण सह नापि ॥ ३ ॥
अर्थ — जो पुरुष सूत्रविषै जाणमान है प्रवीण है सो संसार के उपजनें का नाश करे है बहुरि जैसैं लोहकी सूई है सो सूत्र कहिये डोरा तिस विना होय तौ नष्ट होजाय अर डोरासहित होय तौ नष्ट नहीं हो यह दृष्टांत है ॥
भावार्थ — सूत्रका ज्ञाता होय सो संसारका नाश करे है बहुरि ऐसें है -- जो सूई डोरासहित होय तौ दृष्टिगोचर होय पावै कदाचित् ही नष्ट नहीं हो अर डोरा विना होय तौ दीखै नांही नष्ट होय जाय तैसें जाननां ॥ ३ ॥
१ 'सुत्तंहि' । ? 'सूत्रंहि, ' षट्पाहुडमें ऐसा पाठ है ।