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पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित
तंत्र तपश्चरण आदिका प्ररूपणा है, तथा चित्राम काष्ठलेपादिकका लक्षण वर्णन है तथा धातु रसायनका निरूपण है । बहुरि पांचमी आकाशगता चूलिका है यामैं आकाशविर्षे गमनादिकके कारणभूत मंत्र यंत्र तंत्रादिकका प्ररूपण है। ऐसैं बारमां अंग है। या प्रकार तौ बारह अंग सूत्र हैं। __ बहुरि अंगबाह्य श्रुतके चौदह प्रकीर्णक हैं । तिनिमैं प्रथम प्रकीर्णक सामायिक नामा है, ताविर्षे नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काल भाव भेदकरि छह प्रकार इत्यादिक सामायिकका विशेषकरि वर्णन है । बहुरि दूजा चतुर्विशतिस्तव नाम प्रकीर्णक है ताविर्षे चौवीस तीर्थकरनिकी महिमाका वर्णन है । बहुरि तीजा वंदनानाम प्रकीर्णक है तामैं एक तीर्थकरकै आश्रय वंदना स्तुतिका वर्णन है । बहुरि चौथा प्रतिक्रमणनामा प्रकीर्णक हैं तामें सात प्रकारके प्रतिक्रमणका वर्णन है। बहुरि पांचमां वैनयिकनाम प्रकीर्णक है तामैं पंच प्रकारके विनयका वर्णन है। बहुरि छठा कृतिकर्मनामा प्रकीर्णक है तामैं अरहंत आदिककी वंदनाकी क्रियाका वर्णन है। बहुरि सातमा दशवैकालिकनामा प्रकीर्णक है तिसविर्षे मुनिका आचार आहारकी शुद्धता आदिका वर्णन है । बहुरि आठमां उत्तराध्ययननामा प्रकीर्णक है ताविर्षे परीषह उपसर्गका सहनेका विधान वर्णन है । बहुरि नवमां कल्पव्यवहार नामा प्रकीर्णक है तामैं मुनिके योग्य आचरण अर अयोग्य सेवनके प्रायश्चित तिनिका वर्णन है। बहुरि दशमां कल्पाकल्प नाम प्रकीर्णक है ताविषै मुनिकू यह योग्य है यह अयोग्य है ऐसा द्रव्य क्षेत्र काल भावकी अपेक्षा वर्णन है । बहुरि ग्यारमां महाकल्पनामा प्रकीर्णक है तामैं जिनकल्पी मुनिकै प्रतिमायोग त्रिकालयोगका प्ररूपण. है तथा स्थविरकल्पी मुनिनिकी प्रवृत्तिका वर्णन है । बहुरि बारमा