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________________ अष्टपाहुडमें सूत्रपाहुडकी भाषावचनिका । 1 ५१ दिकके गमनविशेष आदिकका वर्णन है याके पद छबीस कोडि हैं बहुरि प्राणवादनामा बारमां पूर्व है यामैं आठ प्रकार वैद्यक तथा भूतादिक व्याधि दूर करनेके मंत्रादिक तथा विष दूर करनेके उपाय तथा स्वरोदय आदिका वर्णन है याके तेरह कोडि पद हैं । बहुरि क्रियाविशालनामा तेरमां पूर्व है या मैं संगीतशास्त्र छंद अलंकारादिक तथा चौसठि कला, गर्भाधानादि चौरासी क्रिया, सम्यग्दर्शन आदि एकसौ आठ क्रिया, देववंदनादि पच्चीस क्रिया, नित्य नैमित्तिक क्रिया इत्यादिका वर्णन है, याके पाद नव कोडि हैं । चौदमां त्रिलोकविंदुसार नामा पूर्व है या विषै तीन लोकका स्वरूप अर बीजगणितका स्वरूप तथा मोक्षका स्वरूप तथा मोक्षकी कारणभूत क्रियाका स्वरूप इत्यादिका वर्णन है याके पाद बारह कोडि पचास लाख हैं । ऐसें चौदह पूर्व हैं, इनके सर्व पदनिका जोड़ पिच्याणकै कोडि पचास लाख है । बहुरि बारमां अंगका पांचमां भेद चूळिका है ताके पांच भेद हैं तिनिके पद दोय कोडि नव लाख निवासी हजार दोयसै हैं । तहां जलगता चूलिका मैं जलका स्तंभन करनां जलमैं गमन करना । अग्निगता चूलि - कामैं अग्निस्तंभन करनां अग्निमैं प्रवेश करनां अग्निका भक्षण करनां इत्यादिके कारणभूत मंत्र तंत्रादिकका प्ररूपण है, याके पद दोय कोडि नवलाख निवासी हजार दोयसैं हैं । एते एते ही पद अन्य च्यार चूलि - काके जाननें । बहुरि दूजी स्थलगता चूलिका है यात्रि मेरुपति भूमि इत्यादि विषै प्रवेश करनां शीघ्र गमन करनां इत्यादि क्रिया के कारण मंत्र तंत्र तपश्चरणादिकका प्ररूपण है । बहुरि तीजी मायागता चूलिका है ता मैं मायामयी इंद्रजाल विक्रियाके कारणभूत मंत्र तंत्र तपश्चरणादिका प्ररूपण है । बहुरि चौथी रूपगता चूलिका है या मैं सिंह हाथी घोडा बैल हरिण इत्यादि अनेकप्रकार रूप पलटि लेनां ताके कारणभूत मंत्र
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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