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________________ अष्टपाहुडभाषा वचनिका । ११ आगये । संवेगमैं तौ निर्वेद, वात्सल्य, अर भक्ति ये आगये । बहु प्रशममैं निन्दा गर्दा आगई । बहुरि सम्पग्दर्शनके आठ अंग कहे हैं तिनिकूं लक्षण भी कहिये गुण भी कहिये, तिनिके नाम — निःशंकित, नि:कांक्षित, निर्विचिकित्सा, अमूढदृष्टि, उपगूहन, स्थितीकरण, वात्सल्य, प्रभावना ऐसें आठ । I 1 तहां शंकानाम संशयका भी है अर भयका भी है । तहां धर्मद्रव्य अधर्मद्रव्य कालाणुद्रव्य परमाणु इत्यादि तौ सूक्ष्म वस्तु हैं, बहुरि द्वीप समुद्र मेरु पर्वत आदि दूरवर्ती पदार्थ हैं, बहुरि तीर्थकर चक्रवर्ती आदि अंतरित पदार्थ हैं; ते सर्वज्ञके आगमविपैं जैसे कहे हैं तैसें हैं कि नाही हैं ? अथवा सर्वज्ञदेव वस्तुका स्वरूप अनेकान्तात्मक का है सो सत्य है कि असत्य है? ऐसैं संदेह करनां सो शंका कहिये । यह न हो तौ ताकूं निःशंकित अंग कहिये । बहुरि यहु शंका होय है सो मिध्यात्वकर्मके उदयतें होय है, ताका परविषै आत्मबुद्धि होना कार्य है । सो यह परविषै आत्मबुद्धि है सो पर्यायबुद्धि है, यह पर्यायबुद्धि भय भी उपजावै है । शंका नाम भयका भी है, ताके सात भेद हैं; — इस लोकका भय, परलोकका भय, मरणका भय, अन्नरक्षाका भय, अगुप्तिभय, वेदनाका भय, अकस्मात् भय । ऐसैं. ये भय होय तब जानिये याकै मिध्यात्वकर्मका उदय है; सम्यग्दृष्टि भये ये होय नांही । इहां प्रश्न- जो भय प्रकृतिका उदय तौ आठमा गुणस्थान तांई है ताके निमित्ततैं सम्यग्दृष्टीकैं भय होय ही है, भयका अभाव कैसैं ? ताका समाधान :- - जो यद्यपि सम्यग्दृष्टी चारित्रमोहके भेदरूप भयप्रकृतिके उदय भय होय है तथापि ताकूं निर्भय ही कहिये जाते याकै कर्मके उदयका स्वामीपणां नांही है अर परद्रव्यतैं अपनां द्रव्यत्वभावका नाश नहीं मानें है,
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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