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________________ ३६० पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचितचारित्ररूप पांचमां गुणस्थान होय है ताकू श्रावकपद कहिये, बहुरि सर्वदेश परद्रव्यतै निवृत्तिरूप परिणाम होय तब सकलचारित्ररूप छट्ठा गुणस्थान कहिये, यामैं कळू संज्वलन चारित्र मोहका तीव्र उदयतें स्वरूपके साधनेविर्षे प्रमाद होय है तातै ताका नाम प्रमत्तै है; इहांतें लगाय ऊपरिके गुणस्थानवालेकू साधु कहिये है । बहुरि जब संज्वलन चारित्र मोहका मंद उदय होय तब प्रमादका अभाव होय तब स्वरूपके साधनेंविर्षे बडा उद्यम होय तब याका नाम अप्रमत्त ऐसा सातवां गुणस्थान है, यामैं धर्मध्यानकी पूर्णता है । बहुरि जब इस गुणस्थानमैं स्वरूपमैं लीन होय तब सातिशय अप्रमत्त होय हे श्रेणीका प्रारंभ करै है तब यातें ऊपरी चारित्रमोहका अव्यक्त उदयरूप अपूर्वकरण अनिवृत्तिकरण सूक्ष्मसांपराय नाम धारक ये तीन गुणस्थान होय हैं। चौथासूं लगाय दशमां सूक्ष्मसांपरायताई कर्मकी निर्जरा विशेषताकरि गुणश्रेणीरूप होय है । तब यातै ऊपरि मोहकर्मका अभावरूप ग्यारमा बारमा उपशांतकषाय क्षीणकषाय गुणस्थान होय है । ता पी3 तीन घातेया कर्म रहे तिनिका नाशकरि अनंत चतुष्टय प्रगट होय अरहंत होय है तहां सयोगी जिन नाम गुणस्थान है, इहां योगकी प्रवृत्ति है । बहुरि योगनिका निरोध करि अयोगीजिन नामा चौदमा गुणस्थान होय है, तहां अघातिकर्मकाभी नाशकरि अर लगताही अनंतर समय निर्वाणपदकुं प्रात होय है, तहां संसारका अभावतें मोक्ष नाम पावै है। ऐसे सर्व कर्मका अभावरूप मोक्ष होय है, ताका कारण सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र कहे तिनिकी प्रवृति चौथे गुणस्थान सम्यक्त्व प्रगट होनें एकदेश कहिये, तहांते लगाय आगे जैसे जैसे कर्मका अभाव होय तैसें तेसैं सम्यग्दर्शनादिकी प्रवृत्ति बधती जाय अर जैसे जैसैं इनिकी प्रवृत्ति वधै तैसे तैसैं कर्मका अभाव होता जाय जब घातिकमका अभाव होय तब तेरह चौदह गुणस्थान
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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