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________________ अष्टपाहुडमें मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका । ३६१ अरहंत होय तत्र जीवनमुक्त कहावै अर चौदाह गुणस्थानके --- अंत रत्नत्रय की पूर्णता होय है तातैं अघाति कर्मकाभी नाश होय अभा व होय तब साक्षात् मोक्ष होय तब सिद्ध कहावै । ऐसें मोक्षका अर • मोक्ष के कारणका स्वरूप जिन आगमतें जानि अर सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र मोक्षका कारण कया है ताकूं निश्चय व्यवहाररूप यथार्थ जानि सेवनां अर तप भी मोक्षका कारण है सो भी चारित्र मैं अन्तर्भूत करि त्रयात्मकही कया है । ऐसैं इनि कारणनितें प्रथम तौ तद्भवही मोक्ष होय है । अर जेतैं कारणकी पूर्णता न होय ता पहली कदाचित् आयुकर्मकी पूर्णता होय तौ स्वर्गविधैं देव होय है तहां भी यह वांछा रहै जो यह शुभोपयोगका अपराध है इहांतैं चयकरि मनुष्य होऊंगा, तब सम्यग्दर्शनादि मोक्षमार्गं से मोक्षप्राप्त होऊंगा, ऐसी भावना रहै है तब तहां तैं मोक्ष पा है । अर अबार इस पंचमकालमै द्रव्य क्षेत्र काल भावकी सामग्रीका निमित्त नांही तातैं तद्भव मोक्ष नांही तौऊ जो रत्न - त्रयकूं शुद्धताकार सेवै तौ इहांत देव पर्याय पाय पीछें मनुष्य होय मोक्ष पावै है । तातैं यह उपदेश है जैसे वनैं तैसें रत्नत्रयकी प्राप्तिका उपाय करना, तहां भी सम्यग्दर्शन प्रधान है ताका उपाय तौ अवश्य चाहिये, - तातैं जिनागमकूं समझि सम्यक्त्वका उपाय अवश्य करनां योग्य है ऐसें इस ग्रंथका संक्षेप जानो ॥ V छप्पय । सम्यग्दर्शन ज्ञान चरण शिवकारण जानूं तें निश्चय व्यवहाररूप नीकै लखि मानूं । सेवो निशदिन भक्तिभाव धरि निजबल सारू, जिन आज्ञा सिर धारि अन्यमत तजि अघकारू ||
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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