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________________ _अष्टपाहुड में मोक्षपाहुडकी भाषावचनिका । ३५९ नरूप भावना करै है तथा सुने है सो जीव शाश्वता सुख जो नित्य अतीन्द्रिय ज्ञानानंदमय सुख ताहि पावै है ॥ भावार्थ-मोक्षपाहुइमैं मोक्ष अर मोक्षका कारणका स्वरूप कहा है अर जे मोक्षका कारणका स्वरूप अन्यप्रकार मानै हैं तिनिका निषेध किया है तातैं या ग्रंथके पढने सुनने तैं ताका यथार्थ स्वरूपका ज्ञान श्रद्धान आचरण होय है तिस ध्यानतें कर्मका नाश होय अर ताकी बारबार भावना करनेंतें ताविर्षे दृढ होय एकाग्रध्यानकी सामर्थ्य होय है, तिस ध्यानतें कर्मका नाश होय शाश्वता सुखरूप मोक्षकी प्राप्ति होय है । तातें या ग्रंथकू पढनां सुननां निरन्तर भावना राखनी यह आशय है ॥ १०६ ॥ ऐसैं श्रीकुन्दकुन्द आचार्य- यह मोक्षपाहुडग्रंथ संपूर्ण किया । याका संपेक्ष ऐसा–जो यह जीव शुद्ध दर्शन ज्ञानमयी चेतनास्वरूप है तौऊ अनादिही” पुद्गल कर्मके संयोग” अज्ञान मिथ्यात्व रागद्वेषादिक विभावरूप परिणमै है तातैं नवीनकर्मबंधके संतानकरि संसारमैं भ्रमै है। तहां जीवकी प्रवृत्तिके सिद्धान्तमैं सामान्यकरि चौदह गुणस्थान निरूपण किये हैं-तिनिमैं मिथ्यात्वके उदयकरि मिथ्यात्वगुणस्थान होय है, अर मिथ्यात्वकी सहकारिणी अनंतानुबंधी कषाय है ताके केवल उदयकरि सासादन गुणस्थान होय है, अर सम्यक्त्व मिथ्यात्व दोऊके मिलापरूप मिश्रप्रकृतिके उदयकरि मिश्रगुणस्थान होय है; इनि तीन गुण स्थाननिमैं तो आत्मभावनाका अभावही है । बहुरि जब काललब्धिके निमित्त जीवाजीव पदार्थनिका ज्ञान श्रद्धान भये सम्यक्त्व होय तब या जीवकू अपनां परका अर हिताहितका हेय उपादेयका जाननां होय है तब आत्माकी भावना होय है तब अविरतनाम चौथा गुणस्थान होय है अर जब एकदेश परद्रव्य निवृत्तिका परिणाम होय है तब जो एकदेश
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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