SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३५८ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचितअवस्था हैं, तातें आचार्य कहै है मेरै आत्माहीका शरणा है ॥ १०५ ॥ भावार्थ-आत्माका निश्चयव्यवहारात्मक तत्त्वार्थश्रद्धानरूप परिणाम सो सम्यग्दर्शन है, बहुरि संशय विमोह विभ्रम इनिकरि रहित अर निश्चयव्यवहारकरि निजस्वरूपका यथार्थ जाननां सो सम्यग्ज्ञान है, बहुरि सम्यग्ज्ञानकरि तत्वार्थनिकू जानि रागद्वेषादिकसूं रहित परिणाम सो सम्य. क्चारित्र है; बहुरि अपनी शक्ति अनुसार सम्यग्ज्ञानपूर्वक कष्ट आदरि स्वरूपका साधनां सो सम्यक्तप है; ऐसैं ये च्यारूंही परिणाम आत्माके है तातें आचार्य कहै है मेरे आत्माहीका शरण है, याहीकी भावनामैं च्यारूं आयगये । अंतसल्लेखनामैं च्यारि आराधनाका आराधन कह्या है, तहां सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्र तप इनि च्यारनिका उद्योत उद्यवन निर्वहण साधन निस्तरण ऐसैं पंचप्रकार आराधना कह्या है, सो आत्माके भावनेमैं च्यारूं आयगये, ऐसैं अंतसल्लेखनाकी भावना याहीमैं आयगई ऐसें जाननां । तथा आत्माही परममंगलरूप है ऐसा भी जनाया है ॥ १०५॥ आगैं यह मोक्षपाहुडगंथ पूर्ण किया ताका पढनें सुनने भावनेंका फल कहै है;गाथा-एवं जिणपण्णत्तं मोक्खस्स य कारणं सुभत्तीए । जो पढइ सुणइ भावइ सो पावइ सासयं सुक्खं १०६ संस्कृत-एवं जिनप्रज्ञप्तं मोक्षस्य च कारणं सुभक्त्या । यः पठति शृणोति भावयति सः प्राप्नोति शाश्वतं सौख्यं ॥ १०६॥ अर्थ--एवं कहिये ऐसे पूर्वोक्त प्रकार जिनदेवनैं कह्या ऐसा मोक्षपाहुड ग्रंथ है ताहि जो जीव भक्तिभावकरि पढे है याकी बारंबार चिंतव
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy