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अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका ।
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पर्याय है तिनिकरि रहित अमूर्तीक है अर व्यवहारकरि जेतें पुद्गलकर्म बंध्या है तेतै मूर्तीक भी कहिये है। बहुरि शरीरपरिमाण कह्या सो निश्चयनयकरि तौ असंख्यातप्रदेशी लोकपरिमाण है परन्तु संकोच विस्तारशक्तिकरि शरीरौं कछू घाटि प्रदेश प्रमाण आकार रहै है । बहुरि अनादिनिधन कह्या सो पर्यायदृष्टिकरि दखिये तब तौ उपजे विनसै है तोऊ द्रव्यदृष्टिकरि देखिये तब अनादिनिधन सदा नित्य अविनाशी है। बहुरि दर्शन ज्ञान उपयोगसहित कह्या सो देखनां जाननांरूप उपयोगस्वरूप चेतनारूप है । बहुरि इनि विशेषणनिकरि अन्यमती अन्यप्रकार सर्वथा एकान्तकरि मानें हैं तिनिका निषेध भी जाननां, सो कैसैं ? कर्ताविशेषणकरि तौ सांख्यमती सर्वथा अकर्ता मानै है ताका निषेध है । बहुरि भोक्ता विशेषणकरि बौद्धमती क्षणिक मांनि कहै है कर्म• करै और, अर भोगवै और है, ताका निषेध है, जो जीव कर्म करै है ताका फल सो ही जीव भोगवै है ऐसैं बौद्धमतीके कहनेका निषेध है । बहुरि अमूर्तीक कहनेंतें मीमांसक आदिक इस शरीरसहित मूर्तीक ही मानैं है ताका निषेध है। बहुरि शरीरप्रमाण कहनेंतें नैयायिक वैशेषिक वेदान्ती आदि सर्वथा सर्वव्यापक मानें हैं ताका निषेध है । बहुरि अनादिनिधन कहनेंतें बौद्धमती सर्वथा क्षणस्थायी मानै है ताका निषेध है । बहुरि दर्शनज्ञानउपयोगमयी कहनेंतें सांख्यमती तौ ज्ञानरहित चेतनामात्र मानै है, अर नैयायिक वैशोषिक गुणगुणीकै सर्वथा भेद मांनि ज्ञान अर जीवकै सर्वथा भेद मानें है, अर बौद्धमतका विशेष विज्ञानाद्वैतवादी ज्ञानमात्रही मानै है, अर वेदान्ती ज्ञानका कछू निरूपण न करै है, तिनिका निषेध है । ऐसें सर्वका कह्या जीवका स्वरूप जांणि आपकू ऐसा मांनि श्रद्धा रुचि प्रतीति करणीं । बहुरि जीव कहनेहीमैं अजीव पदार्थ जान्यां जाय है, अजीव न होय तौ जीव नाम कैसैं कहता तातें