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अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका। २६७ भावार्थ—ऐसे मिथ्यात्वका निरूपण किया तहां आचार्य कहै है. जो बहुत निरर्थक वचनालापकरि कहा ? एता ही संक्षेप करि कहै हैंजो तीनसौ तरेसठि कुवादि पाषंडी कहे तिनिका मार्ग छोडिकरि जिनमार्गविषै मनकू थांभनां, अन्यत्र जाने न देना। इहां इतनां विशेष और, जाननां जो-कालदोष" इस पंचमकालमैं अनेक पक्षपातकरि मतांतर भये. हैं तिनिकू भी मिथ्या जाणि तिनिका प्रसंग न करना, सर्वथा एकान्तका पक्षपात छोड़ि अनेकान्तरूप जिनवचनका शरण लेणां ॥ १४२ ॥ .
आगें सम्यग्दर्शनका निरूपण करै है, तहां कहै है-जो सम्यग्दर्शन रहित प्राणी है सो चालता मृतक है,गाथा-जीवविमुको सवओ देसणमुक्को य होइ चलसवओ।
सवओ लोयअपुजो लोउत्तरयम्मि चलसवओ॥१४३॥. संस्कृत-जीवविमुक्तः शवः दर्शनमुक्तश्च भवति चलशवः ।
. शवः लोके अपूज्यः लोकोत्तरे चलशवः ॥१४३॥ ___ अर्थ-लोकविर्षे जीवकरि रहित होय ताकू शव कहिये मृतक मुरदा कहिये है तैसैंही जो सम्यग्दर्शनकरि रहित पुरुष है सो चालता मृतक है, बहुरि मृतक तौ लोकविर्षे अपूज्यहै अग्निकरि दग्ध कीजिये है तथा. पृथ्वीमैं गाडिये है अर दर्शनरहित चालता मुरदाहै सो लोकोत्तर जे मुनि सम्यग्दृष्टी तिनिकै विर्षे अपूज्यहैं ते ताकू वंदनादिक नाही करें हैं, मुनिभेष धरै तौऊ संघवाह्य राबैं हैं अथवा परलोकमैं निंद्यगति पाय अपूज्य होय हैं ॥
भावार्थ-सम्यग्दर्शन बिना पुरुष मृतकतुल्य है ॥ १४३ ॥
आगें सम्यक्त्वका महान्पणां कहै है,-- गाथा—जह तारयाण चंदो मयराओ मयउलाण सव्वाणं ।
अहिओ तह सम्मत्तो रिसिसावयदुविहधम्माणं १४४