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________________ विषय चार पुरुषार्थ तथा अन्य व्यापार सर्व भावमें ही परिस्थित हैं ऐसा संक्षिप्त वर्णन | भाव प्राभृतके पढ़ने सुनने मननकरनेसे मोक्षकी प्राप्ति होती है ऐसा उपदेश । तथा पंडित जयचंद्रजी कृत ग्रंथका देशभाषामें सार ॥ २८४ मोक्षपाहुड | मंगलनिमित्त देवको नमस्कार । देव नमस्कृति पूर्वक मोक्षपाहुड लिखनेकी प्रतिज्ञा । परमात्मा के ज्ञाता योगीको मोक्ष प्राप्ति । आत्मा के तीन भेद | ... १३ आत्मत्रयका स्वरूप । परमात्माका विशेष स्वरूप । हरात्माको छोड़कर परमात्माको ध्यानेका उपदेश । - बहिरात्माका विशेष कथन । -मोक्ष प्राप्ति किसके है । ... बंधमोक्षके कारणका कथन । - कैसा हुआ मुनि कर्मका नाश करै है । कैसा हुआ कर्मका वध कर है । गति और दुर्गति कारण । परद्रव्यका कथन । : : : स्वद्रव्यका कथन । निर्वाणकी प्राप्ति किस द्रव्यके ध्यानसे होती है । ... जो मोक्ष प्राप्त कर सकता है उसे स्वर्ग प्राप्ति सुलभ है । ... : इसमें दृष्टान्त। ... स्वर्गमोक्ष के कारण | परमात्मस्वरूप प्राप्ति के कारण और उस विषयका दृष्टान्त । ... तद्वारा श्रेष्ट अश्रेष्ठका वर्णन | - आत्मध्यानकी विधि । ... ध्यानावस्था में मौनका हेतुपूर्वक कथन । योगीका कार्य ।... ⠀⠀⠀⠀ ... ... 930 ... ... ... ... ...vi ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ::: ... ... ... पत्र २८३ २८८ २८९ २९० २९० २९१ २९२ २९२ २९३ २९५ २९६ २९७ २९७ २९८ २९९ २९९ ३०० ३०० ३०१ ३०२ ३०२ ३०४ ३०४ ३०६ ३०७
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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