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________________ पत्र २६० ::::: २६२ २६४ ... २६७ विषय जबतक जरारोगादिका आक्रमण न हो तबतक आत्मकल्याण करो। ... अहिंसाधर्मका उपदेश। ... चार प्रकारके मिथ्यात्वियोंके भेदोंका वर्णन । ... अभव्य विषयक कथन । ... मिथ्यात्व दुर्गतिका निमित्त है। .. ... ... २६५ तीनसै त्रेसठि प्रकारके पाखंडियोंके मतको छुड़ानेका और जिनमतमें प्रवृत्त करनेका उपदेश। सम्यग्दर्शनविना जीव चलते हुए मुरदेके समान है। २६७ सम्यक्त्वकी उत्कृष्टता। ... ... ... सम्यग्दर्शनसहित लिंगकी प्रशंसा। ... ... दर्शनरत्नके धारण करनेका आदेश । ... ... ... २६९ असाधारण धर्मों द्वारा जीवका विशेष वर्णन । ... ... २७० जिनभावना परिणत जीव घातिकर्मका नाश करै है। ....२७२ घातिकर्मका नाश अनंत चतुष्टयका कारण है। ... ... कर्मरहित आत्मा ही परमात्मा है उसके कुछ एक नाम । ... ... २७४ देवसे उत्तम बोधिकी प्रार्थना। ... ... ... ... २७५ जो भक्तिभावसे अरहंतको नमस्कार करते वे शीघ्र ही संसार वेलिका नाश करते हैं। ... ... जलस्थित कमलपत्रके समान सम्यग्दृष्टी विषयकषायोंसे अलिप्त है। ... भावलिंग विशिष्ट व्यलिंगी मुनि कोरा द्रव्यलिंगी है और श्रावकसे भी नीचा है। धीर वीर कोन। ... ... ... धन्य कोन। ... ... ... ... ... ... २७९ मुनिमहिमाका वर्णन। ... ... ... ... ... २७९ मुनि सामर्थ्यका वर्णन। ... मूलोत्तर-गुण-सहित मुनि जिनमत आकाशमें तारागण सहित पूर्ण चद्र समान है। ..... ..... ... ... .... विशुद्धभावके धारक ही तीर्थकर चक्री आदिके पद तथा सुख प्राप्त करें हैं। २८१ विशुद्ध भाव धारक ही मोक्ष सुखको प्राप्त होते हैं। शुद्धभावनिमित्त आचार्यकृत सिद्ध परमेष्ठीकी प्रार्थना। ... a rrrrr & & & & २७३ & & २७८ ::::: . २८० ... २८२ २८
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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