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________________ س س س ... ३१. ... ३१०. . ३११ . ३११ :: :: ::: . ३१२ ... ३१२ :: :: :: :: :: :: :: :: س . ३१५ س س विषय कोन कहां सोता तथा जगता है। ... ज्ञानी-योगीका कर्तव्य। ... ... ... ध्यान अध्ययनका उपदेश। ... आराधक तथा आराधनकी विधिके फलका कथन । आत्मा कैसा है। ... योगीको रत्नत्रयकी आराधनासे क्या होता है। ... आत्मामें रत्नत्रयका सद्भाव कैसैं । ... प्रकारान्तरसे रत्नत्रयका कथन। ... सम्यग्दर्शनका प्राधान्य । ... .. समाग्ज्ञानका स्वरूप। ... सम्यक् चरित्रका लक्षण । ... ... ... परमपदको प्राप्त करनेवाला कैसा हुआ होता है। कैसा हुआ आत्माका ध्यान करै है। ... ... कैसा हुआ उत्तम सुखको प्राप्त करता है। ... कैसा हुआ मोक्षसुखको प्राप्त नहीं करता। ... जिनमुद्रा क्या है। ... ... परमात्माके ध्यानसे योगीके क्या विशेषता होती है। चारित्रविषयक विशेष कथन । - ... जीवके विशुद्ध अशुद्ध कथनमें दृष्टान्त। . सम्यक्तसहित सरागी योगी कैसा। ... कर्मक्षयकी अपेक्षा अज्ञानी तपस्वीसे ज्ञानी तपस्वीमें विशेषता। अज्ञानी ज्ञानीका लक्षण । ... ऐसे लिंगग्रहणसे क्या सुख। ... सांख्यादि अज्ञानी क्यों तथा जैनमें ज्ञानित्व किस कारणसे।... ज्ञानतपकी संयुक्तता मोक्षकी साधक है पृथक २ नहीं। ... स्वरूपाचारण चारित्रसे भ्रष्ट कोंन । ... ज्ञानभावना कैसी कार्यकारी है। ... ... किनको जीतकर निज आत्माका ध्यान करना । ... ध्येय आत्मा कैसा। ... س س :: :: :: :: :: :: :: :: :: :: :: :: :: :: : ३१९ ३२० س ३२१ ... ३२२ ३२३ २४ س س س س ३२९ س س سه .
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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