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________________ २१६ पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित - आगैं कहै है जो — जिनशासनविषै ऐसा मुनिही तीर्थकर प्रकृति बांधै है;— गाथा — विसयविरत्तो सवणो छहसवरकारणाई भाऊण । fareer araari is अरेण कालेन ॥ ७९ ॥ संस्कृत - विषयविरक्तः श्रमणः षोडशवरकारणानि भावयित्वा । तीर्थंकर नामकर्माति अचिरेण कालेन ॥ ७९ ॥ अर्थ — इन्द्रियनिके विषयनिकरि विरक्त है चित्त जाका ऐसा श्रमण कहिये मुनि है सो सोलह कारण भावनाकूं भाय तीर्थंकर नाम प्रकृति है ताहि थोरेही कालकर बांधे है | भावार्थ-यह भावका माहात्म्य है, विषयनित विरक्त भाव होय सोलह कारण भावना भावै तौ अचिंत्य है माहात्म्य जाका ऐसी तीन लोककरि पूज्य तीर्थंकर नामा प्रकृति वांधै ताकूं भोगि अर मोक्षकूं प्राप्त होय । इहां सोलह कारण भावनाके नाम दर्शनविशुद्धि, विनयसंपन्नता, शीलत्रतेष्वनतिचार, अभीक्ष्णाज्ञानोपयोग, संवेग, शक्तितस्त्याग, शक्तितस्तप, साधुसमाधि, वैयावृत्त्यकरण, अर्हद्भक्ति, आचार्यभक्ति, बहुश्रुतभक्ति, प्रवचनभक्ति, आवश्यकापरिहाणि, सन्मार्गप्रभावना, प्रवचनवात्सल्य, ऐसैं सोलह भावना हैं । इनिका स्वरूप तत्वार्थ सूत्रकी टीकातैं जाननां । इनिमैं सम्यग्दर्शन प्रधान है, यह न होय अर पंदरह भावनाका व्यवहार होय तौ कार्यकारी नांही; अरह होय तौ पंदरह भावनाका कार्य यही करिले, ऐसैं जाननां || आगैं भावकी विशुद्धितानिमित्त आचरण कहै है; - गाथा - वारस विहतवयरणं तेरसकिंरियाउ भाव तिविहेण । धरहि मणमत्तदुरियं णाणांकुसरण मुणिपवर ॥ ८० ॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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