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________________ विषय लगे हुए दोषोंको गुरुके सन्मुख प्रकाशित करनेका उपदेश क्षमाका उपदेश । ११ क्षमाका फल । ... क्षमाके द्वारा पूर्व संचित कोधके नाशका उपदेश । ... दीक्षाकाल आदिकी भावनाका उपदेश । भावशुद्धि पूर्वक ही चार प्रकारका बाह्य लिंग कार्यकारी है । भाव विना आहारादि चारि संज्ञाके परवश होकर अनादिकाल संसार भ्रमण होता है । भावशुद्धि पूर्वक बाह्य उत्तर गुणोंकी प्रवृतिका उपदेश । तत्वकी भावनाका उपदेश । ... ... तत्वभावना विना मोक्ष नही । पापपुण्यरूपबंध तथा मोक्षका कारण भावही है । पापबंध के कारणों का कथन | पुण्यबंध के कारणोंका कथन । भावना सामान्यका कथन । उत्तरभेदसहित शीलव्रत भावनेका उपदेश । टीकाकारद्वारा वर्णित शीलके अठारह हजार भेद तथा चौरासी लाख उत्तर गुणों का वर्णन । धर्मध्यान शुक्लध्यानके धारण तथा आर्तरौद्रके त्यागका उपदेश | भवनाशक ध्यान भावश्रमणके ही है । ध्यानस्थितिमें दृष्टान्त । पंचगुरूके ध्यावनेका उपदेश । ज्ञानपूर्वक भावना मोक्षका कारण है । भावलिंगीके संसारपरिभ्रमणका अभाव होता है । ... भाव धारण करनेका उपदेश तथा भावलिंगी उत्तमोत्तम पद तथा । उत्तमोत्तम सुखको प्राप्त करता है । ... भावश्रमणको नमस्कार । देवादि ऋद्धि भी भावश्रमणको मोहित नही करतीं तो फिर अन्य संसारके सुख क्या मोहित कर सकते हैं । : ... ... ... :: ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... : पत्र २३५ २३६ २३७ २३७ २३८ २३९ २३९ २४० २४१ २४३ २४४ २४४ २४५ २४६ २४७ २४८ २५१ २५२ २५३ २५४ २५५ २५५ २५६ २५७ २५७ २५८
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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