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________________ विषय जिनशासनका माहात्म्य | दर्शन विशुद्धि आदि भाव शुद्धि तीर्थकर प्रकृतिकी भी कारण है । विशुद्धिनिमित्त आचरणका उपदेश । जिनलिंगका स्वरूप | जिनधर्मकी महिमा | प्रवृत्ति निवृत्तिरूप धर्मका कथन । पुण्य प्रधानताकर भोगका निमित्त है कर्मक्षयका नहीं मोक्षका कारण आत्मीक स्वभावरूप धर्मही है ... ... आल्मीक शुद्ध परिणति के विना अन्य समस्त पुण्य परिणति सिद्ध हैं । आत्मस्वरूपका श्रद्धान तथा ज्ञान मोक्षका साधक है ऐसा उपदेश । बाह्य हिंसादि क्रिया विना सिर्फ अशुद्धभाव भी सप्तम नरकका कारण है उसमें उदाहरण - तंदुल मत्स्यकी कथा । भावविना बाह्य परिग्रहका त्याग निष्फल है । भावशुद्धि निमित्तक उपदेश । ... भावशुद्धिका फल | भावशुद्धि के निमित्त परीषहोंके जीतनेका उपदेश । परीषह विजेता उपसर्गों से विचलित नहीं होता उसमें दृष्टान्त । भावशुद्धि निमित्त भावनाओं का उपदेश । भावशुद्धि में ज्ञानाभ्यासका उपदेश । 440 भावशुद्धि के निमित्त ब्रह्मचर्यके अभ्यासका कथन । भावसहित चार आराधनाको प्राप्त करता है भावरहित संसार में ... १० भ्रमण कर है । ... भाव तथा द्रव्यके फलका विशेष । ... ... Gr ... ... अशुद्ध भावसेही दोष दूषित आहार किया फिर उसीसे दुर्गति दुःख सहे । सचित्त त्यागका उपदेश । ... पंचप्रकार विनय पालनका उपदेश । वैनृत्यका उपदेश । ⠀⠀⠀⠀ ... ... ⠀⠀⠀⠀ ... ... : ⠀⠀⠀⠀ ... ... ... ... ... ... ... ... ... ... *** ... ... ... पत्र २१५ २१६ २१६ २१७ २१८ २१९ २२० २२१ २२२ २२२ २२३ २२४ २२५ २२६ २२७ २२७ २२८ २२९ २२९ २३० २३१ २३२ २३३ २३४ २.३५
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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