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विषय
जिनशासनका माहात्म्य | दर्शन विशुद्धि आदि भाव शुद्धि तीर्थकर प्रकृतिकी भी कारण है । विशुद्धिनिमित्त आचरणका उपदेश ।
जिनलिंगका स्वरूप |
जिनधर्मकी महिमा |
प्रवृत्ति निवृत्तिरूप धर्मका कथन ।
पुण्य प्रधानताकर भोगका निमित्त है कर्मक्षयका नहीं मोक्षका कारण आत्मीक स्वभावरूप धर्मही है
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आल्मीक शुद्ध परिणति के विना अन्य समस्त पुण्य परिणति
सिद्ध
हैं । आत्मस्वरूपका श्रद्धान तथा ज्ञान मोक्षका साधक है ऐसा उपदेश । बाह्य हिंसादि क्रिया विना सिर्फ अशुद्धभाव भी सप्तम नरकका
कारण है उसमें उदाहरण - तंदुल मत्स्यकी कथा । भावविना बाह्य परिग्रहका त्याग निष्फल है । भावशुद्धि निमित्तक उपदेश ।
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भावशुद्धिका फल | भावशुद्धि के निमित्त परीषहोंके जीतनेका उपदेश । परीषह विजेता उपसर्गों से विचलित नहीं होता उसमें दृष्टान्त । भावशुद्धि निमित्त भावनाओं का उपदेश ।
भावशुद्धि में ज्ञानाभ्यासका उपदेश ।
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भावशुद्धि के निमित्त ब्रह्मचर्यके अभ्यासका कथन । भावसहित चार आराधनाको प्राप्त करता है भावरहित संसार में
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भ्रमण कर है ।
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भाव तथा द्रव्यके फलका विशेष ।
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अशुद्ध भावसेही दोष दूषित आहार किया फिर उसीसे दुर्गति दुःख सहे । सचित्त त्यागका उपदेश । ...
पंचप्रकार विनय पालनका उपदेश । वैनृत्यका उपदेश ।
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