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________________ अष्टपाहुडमें भावपाहुडकी भाषावचनिका। १८१ संस्कृत-अन्यस्मिन् कुमरणमरणं अनेकजन्मान्तरेषु मृतः असि। ___ भावय सुमरणमरणं जन्ममरणविनाशनं जीव! ॥३२॥ अर्थ- - हे जीव या संसारवि अनेक जन्मान्तरविर्षे अन्य कुमरण मरण जेसैं होय तैसें तू मूवा अब तू जा मरण” जन्म मरणका नाश होय ऐसा सुमरण भाय॥ ___ भावार्थ-मरण संक्षेपकरि अन्य शास्त्रविर्षे सतरह प्रकार कह्या है, सो ऐसैं—आवीचिकामरण १ तद्भवमरण २ अवधिमरण ३ आद्यान्तमरण ४ वालमरण ५ पंडितमरण ६ आसन्नमरण ७ वालपंडितमरण ८ सशल्यमरण ९ पलायमरण १० वशार्त्तमरण ११ विप्राणसमरण १२ गृध्रपृष्टमरण १३ भक्तप्रत्याख्यानमरण १४ इंगिनीमरण १५ प्रायोपगमनमरण १६ केवलिमरण १७ ऐसैं सतरह । इनिका स्वरूप ऐसा-जो आयुका उदय समय समय करि घटै है सो समय समय मरण है ये आवीचिकामरण है ॥ १॥ बहुरि जो वर्तमान पर्यायका अभाव सो तद्भवमरण है ॥ २ ॥ बहुरि जो जैसा मरण वर्तमान पर्यायका होय तैसाही अगिली पर्यायका होयगा सो अवधिमरण है, याका दोय भेद तहां जैसा प्रकृति स्थिति अनुभाग वर्तमानका उदय आया तैसाही अगिलीका उदय आवै सो सर्वावधिमरण है; अर एकदेशबंध उदय होय तौ देशावधि मरण कहिये ॥ ३॥ बहुरि जो वर्तमान पर्यायका स्थिति आदिक जैसा उदय था तैसा अगिलीका सर्वतो वा देशतो वंध उदय न होय सो आद्यन्तमरण है ॥४॥ पांचवां बालमरण है, सो बाल पांच प्रकार है; अव्यक्त बाल, व्यवहारबाल, ज्ञानबाल, दर्शनबाल, चारित्रबाल ! तहां जो धर्म अर्थ काम
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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