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पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित
इनिकार्यनिकू न जानें इनिका आचरणकू समर्थ जाका शरीर नहीं होय सो अव्यक्तबाल है । जो लोकका अर शास्त्रका व्यवहारकू न जा तथा बालक अवस्था होय सो व्यवहारंबाल है। वस्तुका यथार्थ ज्ञानरहित ज्ञानबाल है। तत्वश्रद्धानराहेत मिथ्यादृष्टी दर्शनवाल है। चारित्र रहित प्राणी चारित्रबाल है। इनिका मरनां सो बालमरण है। इहां प्रधानपणे दर्शनबालहीका ग्रहण है. जाते सम्यग्दृष्टीके अन्य बालपणां होतेंभी दर्शनपंडितताका सद्भाव पंडितमरणवि.ही गणिये है। तहां दर्शनवालका संक्षेपः दोय प्रकार मरण कह्या है-इच्छाप्रवृत्त १ अनिच्छाप्रवृत्त २ तहां अग्निकरि धूमकरि शस्त्रकरि विषकरि जलकरि पर्वतके तट पडनेकरि अति शीत उष्णकी बाधाकरि बंधनकरि क्षुधातृषाके अवरोधकरि जीभ उपाडनेकरि विरुद्ध आहार सेवनेकरि वाल आज्ञानी चाहि करि मरै सो इच्छाप्रवृत्त है । अर जीवनेका इच्छुक होय और मरै सो अनिच्छाप्रवृत्त है ॥ ५ ॥ ___बहुरि पंडितमरण च्यार प्रकार है;-व्यवहारपंडित सम्यक्त्वपंडित, ज्ञानपंडित, चारित्रपंडित । तहां लोकशास्त्रका व्यवहारवि. प्रवीण होय सो व्यवहारपंडित है। सम्यक्त्व सहित होय सो सम्यक्त्वपंडित हैं। सम्यग्ज्ञानसहित होय सो ज्ञानपंडित है। सम्यक् चारित्रकरि सहित होय सो चारित्रपंडित है। इहीं दर्शन ज्ञान चारित्रसहित पंडितका ग्रहण है जातै व्यवहारपंडित मिथ्यादृष्टी वालमरणमैं आय गया ॥ ६ ॥
बहुरि जो मोक्षमार्गमैं प्रवर्तनेवाला साधु संधतें छूट्या ताकू आसन्न कहिये है तिनिमैं पार्श्वस्थ स्वच्छंद कुशील संसक्तभी लेने, ऐसैं पंच प्रकार भ्रष्ट साधुनिका मरण सो आसन्नमरण है ॥ ७ ॥
बहुरि सम्यग्दृष्टी श्रावकका मरण सो वालपंडितमरण है ॥ ८ ॥