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________________ १४० पंडित जयचंद्रजी छावड़ा विरचित भावार्थ—ऐसैं अरहंतका निरूपण चौदह गाथानिमै किया तहां प्रथम गाथामैं नाम स्थापना द्रव्य भाव गुण पर्याय सहित च्यवन आगति संपत्ति ये भाव अरहंत• जानाऐं हैं ताका व्याख्यान नामादि कथनमैं सर्वही आयगया ताका संक्षेप भावार्थ लिखिये है-तहां प्रथम तौ गर्भकल्याणक होय है सो गर्भमैं आवतैं छह महीने पहली इन्द्रका प्रेन्या धनद जिस राजाकी राणीके गर्भमैं आवसी ताका नगरकी शोभा करै, रत्नमयी सुवर्णमयी मंदिर रचे, नगरकै कोट खाई दरवाजे सुंदर वन उपवनकी रचना करै, सुन्दर जिनके भेष ऐसे नर नारी पुरमैं बसावै, बहुरि नित्य राजमंदिरपरि रत्ननिकी वर्षा होवो करै बहुरि माताके गर्भमैं आवै तब माताकू सोलै सपनां आवे, रुचकद्वीपको बसबावाली देवांगना माताकी नित्य सेवा करें, ऐसैं नव मास बीते प्रभुका तीन ज्ञान दश अतिशय लिये जन्म होय, तब तीन लोकमैं क्षोभ होय, देवनिकै विना बजाए बाजा वाज, इंद्रका आसन कंपै, तब इन्द्र प्रभुका जन्म हूवा जानि स्वर्ग” ऐरावति हस्ती चढ़ि आवै, सर्व च्यार प्रकारके देव देवी भेले होय आवे, शची (इन्द्राणी) माता पासि जाय प्रच्छन्न प्रभुकौं ले आवै, इन्द्र हर्षित हजार नेत्रनिकीर देखे, सौधर्म इन्द्र अपनी गोदमैं लेय ऐरावति हस्तीपरि चढि मेरुपर्वतनैं चालै, ईशान इंद्र छत्र राखे, सनत्कुमार माहेन्द्र इन्द्र चमर ढाएँ, मेरुके पांडुकवनकी पांडुकशिलापरि सिंहासनपरि प्रभुकू थापै, सारे देव क्षीरसमुद्रतें एक हजार आठ कलशनिमैं जल ल्याय देव देवांगना गीत नृत्य वादिन बडे उत्साहसहित प्रभुके मस्तकपरि ढारि जन्मकल्याणकका अभिषेक करै, पीछे शंगार वस्त्र आभूषण पहराय माताकै मंदिर ल्याय माताकू सौंपें, इन्द्रादिक देव अपने स्थानक जांय, कुबेर सेवाकू रहै, पीछे कुमार अवस्था तथा राज्य अवस्था भोगै तामैं मनोवांछित भोग भोग, पीछे
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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