SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 182
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अष्टपाहुडमें बोधपाहुडकी भाषावचनिका । १३९ गाथा-सम्मदंसणि पस्सइ जाणदि णाणेण दव्वपज्जाया । . सम्मत्तगुणविसुद्धो भावो अरहस्स णायबो ॥४१॥ संस्कृत-सम्यग्दर्शनेन पश्यति जानाति ज्ञानेन द्रव्यपर्यायान् । सम्यक्त्वगुणविशुद्धः भावः अर्हतः ज्ञातव्यः ॥४१॥ अर्थ--भावअरहंत-सम्यग्दर्शनकरि तो आपकू तथा सर्वकू सत्तामात्रकरि देखै है ऐसा केवल दर्शन जाकै है बहुरि ज्ञानकरि सर्व द्रव्य पर्यायनिकू जानैं है ऐसा जाके केवल ज्ञान है बहुरि सम्यक्त्व गुणकरि विशुद्ध है क्षायिक सम्यक्त्व जाकै पाहिये है ऐसा अरहंतका भाव जाननां॥ _ भावार्थ-अरहंत होय है सो घातियाकर्मके नाश” होय है सो यह मोहकर्मके नाशतें तो मिथ्यात्व कषायके अभावतें परमवीतरागपणां सर्वप्रकार निर्मलता होय है, बहुरि ज्ञानावरण दर्शनावरण कर्मके नाशतें अनंतदर्शन अनंतज्ञान प्रगट होय है तिनकरि सर्व द्रव्य पर्यायनिकू एकैं काल प्रत्यक्ष देखै जानैं है। तहां द्रव्य छह हैं-तिनिमैं जीवद्रव्य तौ संख्याकरि अनंतानंत है, बहुरि पुद्गल द्रव्य तिनि अनंतानंत गुणे हैं, बहुरि आकाश द्रव्य एक है सो अनंतानंत प्रदेशी है ताकै मध्य सर्व जीव पुद्गल असंख्यात प्रदेशमैं तिष्ठे हैं, बहुरि एक धर्मद्रव्य एक अधर्मद्रव्य ये दोऊ असंख्यात प्रदेशी हैं इनितें आकाशंके लोक अलोकका विभाग है तिस लोकहीमैं कालद्रव्यके असंख्यात कालाणु तिष्ठे हैं। इनि सर्व द्रव्यके परिणामरूप पर्याय हैं ते एक एक द्रव्यकै अनंतानंत हैं तिनिकू कालद्रव्यका परिणाम निमित्त है ताके निमित्ततें क्रमरूप होता समयादिक व्यवहारकाल कहावै है तिसकी गणनाते अतीत अनागत वर्तमान द्रव्यनिके पर्याय अनंतानंत हैं तिनि सर्व द्रव्य पर्यायनिकू अरहंतका दर्शन ज्ञान एकै काल देखै जानैं है याही तैं अरहंतकू सर्व दर्शी सर्वज्ञ कहिये है॥
SR No.022304
Book TitleAshtpahud
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJaychandra Chhavda
PublisherAnantkirti Granthmala Samiti
Publication Year
Total Pages460
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy