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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृत व्याकरण प्रवेशिका व्यंजनवर्ण : क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व स ह । विशेष दृष्टि में मागधी प्राकृत में तालव्य श है । उच्चारणरीति : प्राकृत वर्णमाला का उच्चारण सम्भवतया संस्कृत भाषा की तरह होता है । इसलिए हम लोग इसके उच्चारण के बारे में साधारणतया ज्यादा नहीं जानते । लेकिन बीच में अगर किसी का उच्चारण संस्कृत से भिन्न होगा तो वह तत्तत् स्थल पर कहूंगा । तथापि निम्नलिखित विषय पर ध्यान देना आवश्यक है १. प्राकृत में ऋ ऋ लू लू नहीं होता है । इसके स्थल पर अ इ उ रि होता है । साधारणतया ऋ के स्थल पर अ होता है । इ और उ विशेषविशेष शब्दों में होते हैं । किस नियम से ये सब परिवर्तन होता है, ये बताना काफी मश्किल है। लेकिन परम्परा से यही मिलता है कि ओष्ठयवर्ण के साथ जब ऋ का संयोग होता है तब उ होना जरूरी है । यथा ऋप भ> प्राः वुसह/उसह होता है। किन्तु मृत>प्राः मअ होता है । इस तरह सभी जगह पर होगा। २. प्राकृत में ऐ औ नहीं होता है । उसकी जगह पर ए और ओ होता है। ३. प्राकृत में आदि में न होता है|य के स्थल पर भी ज होता है । यथा यदि प्रा. में जइ होता है। किन्त मागधी प्राकृत में सभी जगह पर य होता है । मागधी में कभी भी ज नहीं होता है । ४. प्राकृत में सर्वत्र मूर्धन्य ण होता है । चाहे संयक्त से या असंयक्त हो, सर्वत्र मूर्धन्य होता है । लेकिन अर्धमागधी प्राकृत में आदि में और संयक्त में दन्त्य न होता है । यथा राज्ञा प्राकृत में रण्णा, अर्धमागधी में रन्ना For Private and Personal Use Only
SR No.020568
Book TitlePrakrit Vyakaran Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaranjan Banerjee
PublisherJain Bhavan
Publication Year1999
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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