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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्राकृत व्याकरण प्रवेशिका ध्वनि तत्त्व (Phonology) मखबन्ध प्राचीन भारतीय संस्कृति का स्वरूप तीन भाषा में है । इन तीनों भाषाओं का नाम है - संस्कृत, पालि और प्राकृत । संस्कृत भाषा में मूलतः हिन्दु शास्त्र की परम्परा की खोज मिलती है । पालि भाषा में बौद्ध धर्म और दर्शन का स्वरूप मिलता है । प्राकृत भाषा में जैन धर्म और संस्कृति का एक परिचय है । प्राचीन भारत के लिए इन तीनों भाषाओं की उपयोगिता है । प्राकृत साहित्य अति विशाल है । प्राकृत एक साधारण नाम है । इस भाषा में माहाराष्ट्री, शौरसेनी, मागधी, पैशाची और अपभ्रंश भाषा है । उपर्युक्त भाषा को छोड़कर और भी एक भाषा है जिसका नाम है अर्धमागधी । अर्धमागधी भाषा में जैन आगम शास्त्र लिखा हुआ है । किन्तु प्राकृत भाषा का एक साधारण रूप है जो कि हर उपभाषा में भी दिखाया जाता है । इसलिए हम लोग केवल प्राकृत भाषा का साधारण रूप देखते हैं । विशेष रूप केवल वही है जो साधारण रूप में मिलता नहीं है । इस तरह कछ रूप और विशेषताएँ प्राकृत उपभाषा में मिलते हैं । नीचे हम लोग केवल प्राकृत भापा का साधारण रूप देखेंगे जो सब उपभापाओं में भी मिलता है। १. प्राकृत भाषा की वर्णमाला प्राकृत में निम्नलिखित वर्णमाला हैस्वरवर्ण : अ आ इ ई उ ऊ ए ओ For Private and Personal Use Only
SR No.020568
Book TitlePrakrit Vyakaran Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaranjan Banerjee
PublisherJain Bhavan
Publication Year1999
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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