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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनुस्वार, अनुनासिक और विसर्ग I होता है । विशेष उपभाषा में कुछ-कुछ विशेषता है । वह भी बताने की जरूरत नहीं है । ९ ५. प्राकृत में तालव्य श मर्धण्य ष नहीं होता है । केवल दन्त्य स होता है । किन्तु मागधी प्राकृत में केवल श होता है । यथा मनुष्य प्रा. मणुस्स मागधी में मणुश्श । 1 ६. प्राकृत में भिन्न वर्गीय वर्णों का संयुक्त वर्ण नहीं होता हैं । इसका मतलब यही है कि एक ही वर्ण के साथ संयुक्त वर्ण होता है । जैसे क का क ख इत्यादि रूप से संयुक्त वर्ण होता है । किन्तु संस्कृत में क के साथ जैसे तकात संयुक्त होता है वैसा प्राकृत में कभी नहीं होता है । सभी जगह पर इस तरह का अध्ययन होना चाहिए । 1 ७. प्राकृत में विसर्ग नहीं होता है । उसकी जगह पर दो तरह का रूप मिलता है । यदि अन्तिम में अकारान्त शब्द के स्थान पर और शब्द के बाद विसर्ग होता है तो उस विसर्ग के स्थल पर ओ होता है । जैसे- सर्वतः प्राकृत में सव्वओ होता है । अगर विसर्ग के बाद कोई वर्ण होता है तो उसका द्वित्व हो जाता है । जैसे दुःख प्राकृत में दुक्ख होता है । ८. प्राकृत में म् के स्थल पर अनुस्वार होता है। चाहे वह वाक्य शेष हो और श्लोकावशेष हो उसके ऊपर एक दृष्टि डालना आवश्यक है । ९. पंचम नासिक्य वर्ण के साथ किसी वर्ण का संयुक्त अक्षर यदि हो तब वही नासिक्य वर्ण के स्थल पर अनुस्वार होता है । जैसे - वंकिम । किन्तु कभी-कभार किसी व्याकरण में पंचम नासिक्य वर्ण की भी उपस्थिति होती है । उसी के अनुसार वङ्किम भी चलता है । लेकिन खास प्राकृत में ऐसा होना ठीक नहीं है । प्राकृत व्याकरण में यद्यपि इसके बारे में दोनों रूप को ही स्वीकार किया है तब भी अनुस्वार लिखना ही उचित है । १०. ऊपर में उल्लिखित नियमावली प्राकृत भाषा सीखने के लिए काफी जरूरी है । विशेष - विशेष उपभाषा में इसका कुछ व्यतिक्रम दिखाया जाता है । लेकिन वह तत्तत् स्थल पर बताना उचित होगा । For Private and Personal Use Only २. अनुस्वार, अनुनासिक और विसर्ग प्राकृत में अनुस्वार, अनुनासिक और विसर्ग के प्रयोग के विषय में कुछ विशेषताएँ हैं । साधारणतया जैसे संस्कृत में होते हैं प्राकृत में ऐसा नहीं है ।
SR No.020568
Book TitlePrakrit Vyakaran Praveshika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSatyaranjan Banerjee
PublisherJain Bhavan
Publication Year1999
Total Pages57
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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