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________________ ६८ ३५७. एलय (एडक) ( उचू पृ १५८ ) एति एत्याकारितो एत्येलकः । एति - एति / आओ-आओ इस प्रकार पुकारने पर जो आता है, se / मेष है। a ३५८. एवंभूय ( एवम्भूत) एवं - यथा व्युत्पादितस्तं प्रकारं भूतः - प्राप्तः एवम्भूतः । ३५६. एसणा ( एषणा ) जो शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार प्राप्त होता है, वह एवंभूत (नय ) है | एषति एभिरित्येषणा । ३६०. एसणिय ( एषणीय) जिससे अन्वेषणा की जाती है, वह एषणा है । ३६१. एसिय (एषिक ) निरुक्त कोश एष्यते - गवेष्यते उद्गमादिदोषविकलतया साधुभिर्यत्तदेषणीयम् । ( स्थाटी प १०३ ) साधु जिसकी उद्गम आदि दोषों से रहित एषणा करते हैं, वह एषणीय / कल्पनीय है । ३६२. ओमचरय (अवमचरक ) ( प्रसाटी प २४६ ) एवन्तीति एषिका । ( सू चू १ पृ १७५ ) जो शिकार के लिए / मांस प्राप्त करने के लिए प्राणियों की खोज करते हैं, वे एषिक हैं । १. 'एडक' का अन्य निरुक्त ( उचू पृ १७४ ) इज्यते देवता अनेन एडक: । (अचि पृ २८५ ) Jain Education International अवमौदर्यां चरति --- आसेवते अवमचरकः । ( उशाटी प ६०६ ) जो अवम / कम खाता है, वह अवमचरक / अल्पभोजी है । For Private & Personal Use Only जिसकी बलि से देवता प्रसन्न होते हैं, वह एडक / मेष है । www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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