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________________ निरक्त कोश ३५२. एअ (एज) एयतीति एओ। (आचू पृ ३८) जो प्रकम्पित होता है, वह एज/वायु है। ३५३. एकलंभि (एकलाभिन्) य एकं प्रधानं शिष्यमात्मना लभते-गृह्णाति शेषास्त्वाचार्यस्य समर्पयति स एकलाभेन चरतीति एकलाभिकः । जो एक प्रधान शिष्य को अपने पास रखता है और शेष को गुरुचरणों में समर्पित करता है, वह एकलाभिक है । एकमेव लभन्ते इत्येवंशीला एकलाभिनः।' (व्यभा ४/२ टी प २३) जो एक का ही लाभ/प्राप्ति करते हैं, वे एकलाभिक हैं । ३५४ एगंतचारि (एकान्तचारिन्) एगते उज्जाणादिसु चरंति एगंतचारी। (सूचू २ पृ ४२०) जो उद्यान आदि एकान्त स्थानों में रहते हैं, वे एकान्त चारी हैं। ३५५. एगचर (एकचर) एगा चरंति एगचरा। (आचू पृ ३१६) जो एकाकी विचरण करते हैं, वे एकचर हैं। ३५६. एगट्ठिय (एकाथिक) एकश्चासावर्थश्च-अभिधेयः एकार्थः स यस्यास्ति स एकाथिकः । (स्थाटी प ४७२) जिन शब्दों का एक ही अर्थ/अभिधेय हो, वे एकार्थक/ पर्यायवाची हैं। १. येषामेक एव लाभो यथा यदि भक्तं लभन्ते ततो वस्त्रादीनि न । अथ वस्त्रादीनि लभन्ते तर्हि न भक्तमपि । (व्यभा ४/२ टी प २३) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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