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________________ निरक्त कोश ३६३. ओमाण (अवमान) जण्णं ओमिणिज्जइ (ओमाणं)। (अनुद्वा ३८०) जो हाथ आदि से नापा जाए, वह अवमान है। ३६४. ओमोय (अवमोक) अवमुच्यते--परिधीयते यः सोऽवमोकः। (भटी पृ ६६७) जिसे खोला जाता है, पहना जाता है, वह अवमोक/ आभूषण है। ३६५. ओयण (ओदन) उनत्ति उदत्ति' वा तमिति ओदनम् । (उचू पृ १५८) ___ जो अपने पोषक रसों से शरीर को आर्द्र कर देता है, वह ओदन चावल है। ३६६. ओरालिय (औदारिक) उदारैः पुद्गलैनिवृत्तमौदारिकम् । (आवहाटी २ पृ १८५) जो उदार/स्थूल पुद्गलों से निष्पन्न है, वह औदारिक/ स्थूल शरीर है। ३६७. ओवक्कमिया (औपक्रमिकी) उपक्रम्यतेऽनेनायुरित्युपक्रमः-ज्वरातीसारादिस्तत्रभवा या सौपक्रमिको। (स्थाटी प २३९) जिससे आयुष्य उपक्रांत/क्षीण होता है, वह औपक्रमिकी/ व्याधि है। ३६८. ओवाहि (उपाधि) उपाधीयते इति उपाधिः। (आटी प १७४) जो सदा पास में रहता है, वह उपाधि कर्म है । १. उन्द-क्लेदने । उनत्ति-क्लेदयति । २. उनत्ति क्लीद्यत्योदनः : (अचि पृ ६२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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