SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ निरुक्त कोश ३१४. उरस (औरस) उरसा वर्तत इति ओरसः-बलवान् । उरसि वा हृदये स्नेहाद् वर्तते यः सः औरसः । (स्थाटी प ४६३) जो उरस् शक्ति से सम्पन्न है, वह ओरस/बलवान् है। जो हृदय में स्नेह उत्पन्न करता है, वह औरस/पुत्र या पुत्री है। ३१५. उरस (उपरस) उपगतो-जातो रसः--पुत्रस्नेहलक्षणो यस्मिन्पितृस्नेहलक्षणो वा यस्यासावुपरसः। (स्थाटी प ४६३) जिसको देखकर पुत्रस्नेह या पितृस्नेह अभिव्यक्त होता है, वह उपरस/औरस है। ३१६. उलूक (उलूक) ऊर्ध्वकर्णः उलूकः । (अनुद्वा ३६८) जिसके कान ऊर्ध्वमुखी हैं, वह उलूक है । ३१७. उवओग (उपयोग) उपयुज्यते-वस्तुपरिच्छेदं प्रति व्यापार्यते जीव एभिरित्युपयोगाः । (प्रसाटी प ३८१) जिसके द्वारा प्राणी वस्तुबोध में व्याप्त होता है, वह उपयोग है। १. 'उलूक' के अन्य निरुक्तअलत्युलूकः, उच्चर्लोक्यते वा। (अचि पृ २९६) जो केवल रात्रि में ही देखने में समर्थ है वह उल्लू है । (अल-पर्याप्ती) लक्ष्मी का वाहन होने से जो पूज्यभाव से देखा जाता है, वह उलूक है। वलतीति उलूकः । (शब्द पृ २७३) जो (दिन में दृष्टि का) संवरण करता है, (रात्रि में) संचरण करता है, वह उल्लू है । (वल-संवरणे, सञ्चरणे) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy