SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५८ निरक्त कोश ३०६. उम्माण (उन्मान) जण्णं उम्मिज्जइ । (अनुद्वा ३७८) जिससे तोला जाता है, वह उन्मान है। यदुन्मीयते-प्रतिनियतस्वरूपतया व्यवस्थाप्यते तदुन्मानम् । (अनुद्वामटी प १४१) जो वस्तु के स्वरूप को निश्चित करता है, वह उन्मान माप-तोल है। ३१०. उर (उरस्) इति अर्यतेऽनेनेति उरः। (उचू पृ १५०) जो स्पन्दित होता है, फैलता है, वह उर है। ३११. उरग (उरग) . उरेण गच्छतीति उरगः । (उचू पृ २३१) जो उर/वक्षस्थल से चलता है, वह उरग है । ३१२. उरपरिसप्प (उरःपरिसर्प) उरसा-वक्षसा परिसर्पन्ति–सञ्चरन्तीत्युरःपरिसर्पाः । (स्थाटी प ५०२) जो उर/वक्ष से परिसर्पण/गमन करते हैं, वे उरपरिसर्प हैं । - ३१३. उरन्भ' (उरभ्र) उरसा भ्राम्यति बिति वा तमिति उरभ्र'। (उचू पृ १५९) जो ऊन के साथ चलता है, वह उरभ्र/मेष है । जो ऊन को धारण करता है, एह उरभ्र/मेष है । १. urabbha-wool lat. vervex. (पा पृ १५५) २. 'उरभ्र' का अन्य निरुक्तउच्चैरभते उरभ्रः । जो उच्च शब्द करता है, वह उरभ्र है। उरभ्रमतीति उरभ्रः। जो उरु/अधिक घूमता है, वह उरघ्र है। (अचि पृ २८५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy