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________________ निरुक्त कोश ३१८. उवकारिगा (उपकारिका) उपकरोति–उपष्टभ्नातीत्युपकारिका। (जीटी प २२२) जो उपकार करती है|सहारा देती है, वह उपकारिका/ पीठिका है। ३१६. उवक्कम (उपक्रम) उपक्रम्यते अनेनेत्युपक्रमः। (सूचू १ पृ १७) जिसके द्वारा उपक्रम/प्रारम्भ किया जाता है, वह उपक्रम है। उपक्रम्यते वा निक्षेपयोग्यं क्रियतेऽनेन गुरुवाग्योगेनेत्युपक्रमः। (अनुद्वामटी पृ ४०) जो गुरुवचनों के द्वारा निक्षेपयोग्य किया जाता है, वह उपक्रम है। ३२०. उवक्खर (उपस्कर) उपस्क्रियतेऽनेनेत्युपस्करः। (स्थाटी प २१३) - जो वस्तु को उपस्कृत/संस्कृत करता है, वह उपस्कर/ मसाला है। ३२१. उवग (उपग) उवयोगं गच्छंतीति उवगा । (आचू पृ ३७०) जो उपयोग में आते है, वे उपग/वृक्ष हैं। ३२२. उवगरण (उपकरण) जं जुज्जति उवकारे उवकरणं तं से होइ।' (निचू १ पृ. ६३) ___ जो उपकार करता है, वह उपकरण है। १. उपकरोतीत्युपकरणं । (सूचू २ पृ ३२५) उपक्रियते-उपष्टभ्यते स्फीति नीयते अनेनेति धर्मोपकरणम् । (आवमटी प ४२५) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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