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________________ निरुक्त कोश ४७ २५१. आसव (आश्रव) आश्रवति-ईषत् क्षरति जलं यैस्ते आश्रवाः। (भटी प ८३) जिनसे थोड़ा-थोड़ा जल झरता है, वे आस्रव/स्रोत हैं। २५२. आसव (आस्नव) ___ आ अभिविधिना स्नौति-श्रवति कर्म येभ्यस्ते आस्नवाः । (प्रटी प २) जिससे कर्म प्रवाहित होते हैं, वह आस्नव/आश्रव है । २५३. आसा (आशा) आससति तमिति आसा।' (आचू पृ ७२) जो मनुष्य को आशान्वित करती है, वह आशा है । २५४. आसायणा (आशातना) आयाय सातयाणा, आयस्स उ साडणा जा उ । सा होती आसातणा। आतस्स साडणं ती, यकारलोवम्मि होइ आसयणा । (जीतभा ८६२-६४) जो आय/ज्ञान आदि का शाटन/विनाश करतो है, वह आशातना है। सम्यक्त्वादिलाभं शातयति-विनाशयतीत्याशातना । (उशाटी प ५७६) जो सम्यकत्व आदि का विनाश करती है, वह आशातना है । १. 'आशा' के अन्य निरुक्तआश्यति अनया आशा । (अचि पू९६) जिसके द्वारा व्यक्ति क्षीण हो जाता है, वह आशा/आकांक्षा है। आसमन्तात् अश्नुते (इति आशा)। (आप्टे पृ ३६६) जो सब कुछ पाना चाहती है, वह आशा है। २. ज्ञानादिगुणा आ–सामस्त्येन शात्यन्ते अपध्वस्यन्ते यकाभिस्ता आशातना । (स्थाटी प ४८८) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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