SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४८ निरुक्त कोश २५५. आसाविणी (आस्राविनी) आश्रवतीति आश्राविनी। (सूचू १ पृ २०२) जो झरती है, जो छेदवाली है, वह आस्राविनी (नौका) है। २५६. आसास (आश्वास) आश्वसन्त्यस्मिन्नित्याश्वासः। (आटी प ५) जिसमें प्राणी सुखपूर्वक श्वास लेते हैं, वह आश्वास/विश्रामस्थल है। आश्वासयीति आश्वासः। (व्यभा ४/२ टी प ६७) जो आश्वस्त करता है, वह आश्वास/विश्राम-स्थल है। २५७. आसीविस (आशीविष) सप्पस्स दाढा आसी, तीए विसं जस्स सो आसीविसो । (दअचू पृ २०८) जिसकी आशी/दाढा में विष होता है, वह आशीविष (सर्प) है । २५८. आहरण (आहरण) आहरति तमत्थे विण्णाणमिति आहरणं । (दअचू पृ २०) जो प्रतिपाद्य का अर्थ में आहरण करता है, वह आहरण उदाहरण है। २५६. आहाकम्म (आधाकर्मन्) ओरालसरीराणं, उद्दवणऽइवायणं तु जस्सट्ठा। मणमाहित्ता कुव्वति, आहाकम्मं तयं बेन्ति ॥ (जीतभा ११००) __ मन में विचार कर जिसके लिए औदारिक शरीरवाले प्राणियों का अपद्रवण/पीड़न और अतिपात किया जाता है, वह आधाकर्म है । साधूनामाधया-प्रणिधानेन यत् कर्म षट्कायविनाशेनाशनादिनिष्पादनं तद् आधाकर्म। (बृटी पृ १४१८) साधुओं को लक्षित कर किया जाने वाला कर्म (अशन आदि का निष्पादन) आधाकर्म है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy