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________________ ४२ आलम्ब्यते - पतद्भिराश्रीयते इत्यालम्बनम् । गिरते हुए व्यक्ति जिसका सहारा लेते हैं, २२४. आलय (आलय ) आलीयन्ते तस्मिन्नित्यालयः । २२५. आलवण (आलपन ) अत्यर्थं लवणं आलवणं । जिसमें निवास किया जाता है, वह आलय / मकान है । अधिक बोलना आलपन है । २२६. आलीण ( आलीन ) ज्ञानादिषु आ समन्तात् लीना आलीनाः । जो ज्ञान आदि में सम्पूर्ण रूप से हैं । २२७. आलेव ( आलेप ) आलिप्यते अनेनेति आलेपः । जो लिप्त करता है, वह आलेप है । २२८. आलोग (आलोक ) आलोक्यते ज्ञायतेऽनेनेत्यालोकः । प्रकाश है, ज्ञान है । २२६. आलोय ( आलोक ) आलोक्कतोति आलोको । निरुक्त कोश ( प्रसाटी प २२६ ) वह आलम्बन है । २३०. आलोयण (आलोकन) ( उच्च पृ १९३ ) ( नंटि पृ १६२ ) जिसके द्वारा देखा जाता है / जाना जाता है, वह आलोक / Jain Education International (दक्षुचू प १५ ) ( व्यभा १० टी प ६० ) लीन हैं, वे आलीन / तल्लीन ( आचू पृ १२५ ) जो आलोकित / स्पष्ट अभिव्यक्त है, वह आलोक है । For Private & Personal Use Only ( निचू २ पृ २१६) आलोक्यन्ते दिशोऽस्मिन् स्थितैरित्यालोकनम् । ( उशाटीप ४५१ ) जहां से दिशाओं का अवलोकन किया जाता है, वह आलोकन / गवाक्ष है । www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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