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________________ ૪૦ २११. आयाण (आदान ) आदीयते - प्रथममेव गृह्यत इत्यादानम् । २१२. आयार ( आचार) जो पहले ग्रहण किया जाता है, वह आदान / प्रारम्भ है । आचर्यतेऽसावित्याचारः । ( दजिचू पृ २७१ ) जिसका आचरण किया जाता है, वह आचार है । २१३. आयावय ( आतापक) २१४. आयावाइ (आत्मवादिन्) आतापयति-- शीतादिभिर्देहं संतापयतीत्या तापकः । ( औटी पृ ७५ ) जो शरीर को गर्मी, सर्दी आदि से संतप्त करता है, वह आतापक है । आत्मानं वदितुं शीलमस्येति आत्मवादी । २१५. आया हम्म ( आत्मघ्न ) निरुक्त कोश ( आटी प १६६ ) जो आत्मा का कथन करता है, वह आत्मवादी है । २१६. आरंभ (आरम्भ ) आत्मानं दुर्गतिप्रपातकारणतया हन्ति - विनाशयतीत्यात्मघ्नम् । ( पिटी प ३६ ) जो आत्मा का हनन / विनाश करता है, वह आत्मघ्न / आत्मविनाशक है । २१७. आरंभजीवि (आरंभजीविन् ) आरंभेण जीवतीति आरंभजीवी । ( आटी प २१ ) आरभ्यते—विनाश्यते इति आरम्भः । (प्रटी प ६ ) जिसके द्वारा प्राणियों का आरंभ / विनाश किया जाता है, वह आरंभ / हिंसा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only ( आच पृ १६२ ) जो आरम्भ / हिंसा से जीवन चलाता है, वह आरम्भजीवी है । www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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