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________________ निरक्त कोश जो आचार की प्रभावना करते हैं, वे आचार्य हैं । जो आचार का प्रशिक्षण देते हैं, वे आचार्य हैं। मर्यादया चरन्तीति आचार्याः। जो मर्यादापूर्वक चलते हैं, वे आचार्य हैं। आचारेण वा चरन्तीति आचार्याः। (आवचू १ पृ ५८५) जो आचारविधि के अनुसार चलते हैं, वे आचार्य हैं। आचर्यते-सेव्यते कल्याणकामैरित्याचार्यः। (प्रसाटी प २४) ___कल्याण की कामना करने वाले व्यक्ति जिसकी सेवा करते हैं, वह आचार्य है। आ-ईषद् अपरिपूर्णाः चाराः हेरिका ये ते आचाराः चार कल्पा इत्यर्थः। युक्तायुक्त विभागनिपुणाः विनेयाः अतस्तेषु साधवो यथावच्छास्त्रार्थोपदेशकतया इत्याचार्याः। (भटी प ४) गण में जो शिष्य गुप्तचर सदृश होते हैं, वे आ-चार हैं। उनमें जो सूत्र और अर्थ के व्याख्याता हैं, वे आचार्य हैं । २०८. आयव (आतप) आ-समन्तात् तपति संतापयति जगदिति आतपः । (उशाटी प ३८) जो चारों ओर से तपता है और सभी को संतप्त करता है, वह आतप है। २०६. आयवि (आत्मवित्) आत्मानं श्वभ्रादिपतनरक्षणद्वारेण वेत्तीत्यात्मवित् । (आटी प १५३) जो आत्मा को जानता है, वह आत्मविद् है । जो आत्मरक्षा के उपायों को जानता है, वह आत्मविद् है । २१०. आयाण (आदान) आदीयतेऽनेनेत्यादानः । (दटी प १६८) _ जिससे गन्तव्य प्राप्त किया जाता है, वह आदान/मार्ग है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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