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________________ निरक्त कोश प्रसंगायाता आगत्य यत्र तिष्ठन्ति तदागन्तारम् । (आटी प ३०६) __ प्रयोजनवश आए हुए लोग जहां ठहरते हैं, वह आगन्त्रागार/ धर्मशाला है। १६६. आगम (आगम) णज्जंति अत्था जेण सो आगमो।' (आवचू १ पृ ३६) जिसके द्वारा पदार्थों का अवबोध होता है, वह आगम है । अत्तस्स वा वयणं आगमो। (अनुद्वाचू पृ १६) जो आप्तवचन है, वह आगम है। गुरुपारम्पर्येणागच्छतीत्यागमः। (अनुद्वामटी प २०२) जो गुरु-परंपरा से आता है, वह आगम है । १६७. आगर (आकर) आकुर्वन्ति तस्मिन्नित्याकरः। (उशाटी प ६०५) जो खोदा जाता है, वह आकर/खान है। । १६८. आगसण (आकर्षण) आकृष्यत इति आगसणं । (निचू २ पृ १७६) जिसके द्वारा आकृष्ट किया जाता है, वह आकर्षण है। १६६. आगार (आकार) आक्रियन्त इत्याकाराः। (आवहाटी २ पृ २३३) जो (ग्रहण) किए जाते हैं, वे आकार/अपवाद हैं। १७०. आगास (आकाश) आ–मर्यादया तत्संयोगेऽपि स्वकीय स्वरूपेऽवस्थानतः सर्वथा ततस्वरूपत्वाप्राप्तिलक्षणया प्रकाशन्ते-स्वभावलाभेन अवस्थिति आ-समन्तात् गम्यन्ते-ज्ञायन्ते जीवादयः पदार्था अनेनेति वा आगमः। (अनुद्वामटी प २०२) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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