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________________ निरुक्त कोश करणेन च दीप्यन्ते पदार्थसार्था यत्र तदाकाशमिति ।' (अनुद्वामटी प ६७) ___आकाश से संयुक्त होकर भी जहां पदार्थ उसके स्वरूपगत गुणों से अप्रभावित होते हुए अपने मूल रूप में अवस्थित और अभिव्यक्त रहते हैं, वह आकाश है। १७१. आघविय (अर्घापित) अर्घः-पूजा तस्य आपः प्राप्तिर्जाता यस्य तदर्घापितं अर्घ वा आपितं प्रापितं यत्तदर्घापितम् । (प्रटी प ११३) जिसने अर्घा/पूजा को प्राप्त किया है, वह अर्घापित है। १७२. आचाल (आचाल) आचाल्यतेऽनेनातिनिविडं कर्मादीत्याचालः। (आटी प ५) जिसके द्वारा अति सघन कर्मों को आचालित/प्रकम्पित किया जाता है, वह आचाल/आचार है । १७३. आजाति (आजाति) आजायन्ते तस्यामित्याजातिः । (आटी प ५) जिसमें (प्राणी) उत्पन्न होते हैं, वह आजाति है । १७४. आजीविय (आजीविक) आजीवन्ति ये अविवेकतो लब्धिपूजाख्यात्यादिभिश्चरणादीनि इत्याजीविकाः। (प्रज्ञाटी प ४०६) जो भिक्षु पूजा-प्रतिष्ठा के लिए संयमजीवन यापन करते हैं, वे आजीविक/पाखंडी हैं। १७५. आजोजिता (आयोजिका) आयोजयन्ति जीवं संसारे इत्यायोजिकाः। (प्रज्ञाटी प ४४५) जो जीव को संसार में आयुक्त नियोजित करती है, वह आयोजिका (क्रिया) है। 'आकाश' का अन्य निरुक्तआकाशन्ते सूर्यादयोऽस्मिन्निति आकाशम् । (अचि पृ ३७) जहां सूर्य आदि चमकते हैं, वह आकाश है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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