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________________ निरुक्त कोश १५६. आइन्न ( आकीर्ण ) आकीर्यते व्याप्यते विनयादिभिः गुणैरिति आकीर्णः । १५७. आउ ( आयुष्) जो विनय आदि गुणों से आकीर्ण / संपन्न होता है, वह आकीर्ण / जातिमान् अश्व है । प्रतिसमयभोगत्वेन आयातीत्यायुः । (निचू ३ पृ २३७) जिसका प्रतिक्षण उपभोग होता है, वह आयु है । १५८. आउज्ज (आवर्ज ) एति - गच्छति गत्यन्तरमनेनेत्यायुः । (प्राक १ टी पृ ६ ) जिससे जीव एक गति से दूसरी गति में जाता है, वह आयु / आयुष्यकर्म है । १५. आउत ( आयुक्त ) अभिमुखीक्रियते मोक्षोऽनेनेति आवर्जः । ( प्रज्ञाटी प ६०४ ) जो मोक्ष को अभिमुख / निकट करता है, वह आवर्ज / शुभ प्रवृत्तिविशेष है । अच्चत्थं जुत्तो आउत्तो । ( उशाटी प ४६ ) १६०. आउर ( आतुर ) २६. जो अत्यन्त युक्त / जागरूक है, वह आयुक्त / अप्रमत्त है । Jain Education International अच्चत्थं तुरति आतुरो । जो अत्यंत आकुल व्याकुल होता है, वह आतुर है । अत्यर्थं तरतीत्यातुरः । ' जो अत्यधिक त्वरता / शीघ्रता करता है, वह आतुर है । १. तुर — त्वरणे सौत्रः आतोरति आतुरः । (अचि पृ १०५ ) For Private & Personal Use Only ( निंचू १ पृ २५ ) ( आचू पृ १०८ ) ( उचू पृ ५४ ) www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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