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________________ २८ निरुक्त कोश १५१. अहियगामिणी (अहितगामिनी) अधितो संसारो तं गमयतीति अधितगामिणी। (दअचू पृ १६७) __ जो अहित/संसार की ओर ले जाती है, वह अहितगामिनी (भाषा) है। १५२. अहीकरण (अधीकरण) अधी--- अबुद्धिमान् पुरुषः स तं करोतीत्यधिकरणम् । (निचू ३ पृ ३८) ___जिसे अ-धी/बुद्धिहीन मनुष्य करता है, वह अधिकरण कलह १५३. अहोकरण (अध:करण) अधो अधस्तात् आत्मनः करणं अहोकरणम् । (निचू ३ पृ ३८) जो आत्मा का पतन करता है, वह अधःकरण कलह है। १५४. आइच्च (आदित्य) आदौ अहोरात्रसमयादीनां भव आदित्यः । (भटी पृ १०६१) जिससे रात, दिन आदि का काल-विभाग प्रारम्भ होता है, वह आदित्य/सूर्य है। १५५. आइण्णा (आचीर्णा) साधुभिराचर्यते या सा आचीर्णा । (निचू २ पृ ८४) मुनि जिसका आचरण करते हैं, वह आचीर्णा/आचारविधि है। १. 'आदित्य' के अन्य निरुक्त आदत्ते रसान् । आदत्ते भासं ज्योति ज्योतिषाम् । आदीप्तो भासेति वा । अदितेः पुत्र इति वा । (नि २/१३) जो रसों को लेता है, वह आदित्य है। जो ज्योतिष्पिंडों के प्रकाश को अपने में समाहित कर लेता है, वह आदित्य है। जो चमक से अत्यन्त दीप्त है, वह आदित्य है। जो अदिति का पुत्र है, वह आदित्य है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.016101
Book TitleNirukta Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Mahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages402
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size11 MB
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